आतंक की लपटें

काबुल हवाई अड्डे के पास गुरुवार को जो हुआ, वह एक तरह से उन्हीं आशंकाओं का त्रासद सच में तब्दील होना है जो अफगानिस्तान पर तालिबान के नियंत्रण के साथ ही जताई जाने लगी थीं। यों दो दशक पहले की अपनी छवि के मद्देनजर उठते सवालों के बीच हाल के दिनों में तालिबान की जैसी प्रतिक्रियाएं सामने आई थीं, उसमें एक उम्मीद यह बन रही थी कि इस बार शायद उसका कुछ अलग रुख देखने को मिले। हो सकता है कि तालिबान अपने शासन को लेकर विश्व में कायम एक धारणा को तोड़ना चाहता हो। लेकिन तालिबान के संघर्ष के जो तौर-तरीके रहे हैं, उसमें न केवल खुद उसकी, बल्कि प्रतिद्वंद्वी गुटों की ओर से भी हिंसा और आतंक की घटनाएं आशंका के अनुरूप ही होती हैं।

काबुल हवाई अड्डे के पास दो आत्मघाती हमलावरों और बंदूकधारियों ने वहां मौजूद भीड़ पर जिस प्रकृति का हमला किया, उसे इसी तरह देखा जा सकता है। इस हमले में ग्यारह अमेरिकी नौसैनिकों सहित कम से कम बहत्तर लोगों की जान चली गई, जबकि डेढ़ सौ से ज्यादा लोग बुरी तरह घायल हो गए। अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह हमला कितना बड़ा, भयावह और सुनियोजित था।

खबरों के मुताबिक इस हमले की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट यानी आइएस के खोरासान गुट ने ली और कहा कि उसके निशाने पर अमेरिकी सैनिक थे। बड़ी संख्या में आम नागरिकों के भी मारे जाने के बाद उठने वाले सवालों के मद्देनजर स्वाभाविक ही है कि अमेरिकी सैनिकों को निशाने पर रखने का बहाना बनाया जाए, लेकिन सच यह है कि ऐसे हमले किए ही इसलिए जाते हैं ताकि उसमें ज्यादा से ज्यादा लोग मारे जाएं और उससे स्पष्ट संदेश जाए। इस तरह के आतंकवादी समूहों की नजर में किसी की जान की कोई कीमत नहीं होती, वे उनके प्रतिद्वंद्वी हों या फिर आम नागरिक।

आइएस के खोरासान गुट के काम करने का इलाका ईरान, तुर्कमेनिस्तान और अफगानिस्तान है और वह बेहद खतरनाक आतंकी समूह है। यह हमला अमेरिकी सैनिकों की वापसी के अंतिम चरण में और तालिबान के अफगानिस्तान में लगभग सभी इलाकों पर नियंत्रण के बाद सामने आया। तालिबान अपने कब्जे के दौरान अफगानिस्तान के लोगों के लिए अमेरिकी सैनिकों के कब्जे से छुटकारे के जिस आश्वासन के सहारे आगे बढ़ रहा था, ताजा हमला उस पर गहरा सवालिया निशान लगाता है

स्वाभाविक ही दुनिया भर में मानवीय सरोकार रखने वाले लोग इस बात को लेकर फिक्रमंद हैं कि वहां आने वाले दिनों में और कैसी त्रासदी खड़ी हो सकती है। इस बात की पूरी आशंका है कि अफगानिस्तान में अब तालिबान, आइएस या अन्य हथियारबंद आतंकी समूहों के बीच हितों और वर्चस्व को लेकर भयानक हिंसा का नया दौर शुरू हो सकता है। जाहिर है, इसके सबसे ज्यादा ंशिकार अफगान नागरिक होंगे, जो कभी अमेरिका या अन्य देश तो कभी तालिबान जैसे समूहों के टकराव के बीच लंबे समय से पिसते रहे हैं। अमेरिका या तालिबान, सबका दावा यही रहता है कि वे अफगानिस्तान के लोगों के हित में खड़े हैं, लेकिन इस सबका हासिल दुनिया के सामने है। आज अफगानिस्तान में लोगों के सामने अपने भविष्य को लेकर पूरी तरह अनिश्चितता है।

वहां हिंसा का दौर कब खत्म होगा, यह कहा नहीं जा सकता। अफगान लोगों के हित सुनिश्चित करने के नाम पर वहां के संसाधनों पर कब्जे का जैसा खेल सालों से चलता रहा है, उसमें अफगानिस्तान का अब तक कोई भला नहीं हुआ है। अब ताजा आतंकी हमले के बाद देखना यह है कि अफगानिस्तान पर नियंत्रण के बाद तालिबान ने सत्ता संचालन और सब कुछ ठीक करने का जैसा आश्वासन दिया था, उसे लेकर उसका अगला रुख क्या होता है।

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