President Ramnath Kovind will attend the ceremony of educational project of Gorakhnath temple for the second time | राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद दूसरी बार गोरखनाथ मंदिर के शैक्षिक प्रकल्प के समारोह में होंगे शामिल; गोरखपुर को नॉलेज सिटी बनाने का किया था आह्वान

27 मिनट पहले
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गोरक्षपीठ के बुलावे पर राष्ट्रपति कोविंद 10 दिसम्बर 2018 को भी गोरक्षधरा पर आ चुके हैं। - Dainik Bhaskar

गोरक्षपीठ के बुलावे पर राष्ट्रपति कोविंद 10 दिसम्बर 2018 को भी गोरक्षधरा पर आ चुके हैं।

धर्म, योग, अध्यात्म के साथ शिक्षा के प्रसार के जरिये लोक कल्याण गोरक्षपीठ की परंपरा रही है। पीठ के अधीन संचालित दर्जनों शैक्षिक प्रकल्पों की अपनी विशेष ख्याति है। 28 अगस्त को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में गुरु गोरखनाथ विश्वविद्यालय का लोकार्पण कर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद एक बार फिर गोरक्षपीठ के ‘शिक्षा के जरिये सेवा’ की भावना के साक्षी बनेंगे।

इसी दिन उनके द्वारा मुख्यमंत्री एवं गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ की पहल पर बन रहे महायोगी गुरु गोरक्षनाथ उत्तर प्रदेश राज्य आयुष विश्वविद्यालय की नींव भी रखेंगे। गोरक्षपीठ के बुलावे पर राष्ट्रपति कोविंद 10 दिसम्बर 2018 को भी गोरक्षधरा पर आ चुके हैं। तब वह गोरखनाथ मंदिर के संचालन में सेवारत महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के संस्थापक सप्ताह समारोह में बतौर मुख्य अतिथि आए थे। राष्ट्रपति ने तब गोरखपुर को नॉलेज सिटी बनाने का आह्वान किया था। इस बार जब वह आएंगे तो अपने आह्वान को आसमान छूता देख प्रफुल्लित भी होंगे।

स्वतंत्रता और शिक्षा आंदोलन से गोरक्षपीठ का पुराना नाता
गोरखपुर को केंद्र बनाकर पूर्वांचल में स्वतंत्रता और शिक्षा के आंदोलन से गोरखनाथ मंदिर का पुराना नाता रहा है। 1885 में गोरक्षपीठ के महंत गोपालनाथ थे। उनके ऊपर आरोप था कि वह अंग्रेजों के खिलाफ जनता को भड़का रहे हैं। उनकी गिरफ्तारी हो गई। उन्हें छुड़ाने के लिए उनके शिष्य जोधपुर के राजा ने अंग्रेजों से बात की, लेकिन अंग्रेज नहीं माने। फिर तत्कालीन नेपाल नरेश ने हस्तक्षेप किया। गोरखपुर में गोरखा रेजीमेंट थी। गोरखा रेजीमेंट ने ब्रिटिश हुकूमत को चेतावनी दी कि अगर उन्हें रिहा नहीं किया जाएगा तो विद्रोह कर देंगे। तब जाकर गोपालनाथ जी को छोड़ा गया।

गोरक्षपीठ पर लगातार लगते रहे हैं आरोप
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान गोरक्षपीठ पर लगातार यह आरोप लगते रहे कि यहां क्रांतिकारियों को, अंग्रेजों का विरोध करने वाले लोगों को शरण और सहयोग मिलता है। 1922 में तत्कालीन महंत दिग्विजयनाथ जी को चौरीचौरा घटना के लिए गिरफ्तार किया गया था। उच्च स्तर पर हस्तक्षेप के बाद उन्हें रिहा किया गया। सीएम एवं वर्तमान पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ के दादागुरु महंत दिग्विजयनाथ दासता से मुक्ति व सामाजिक विकास के लिए शिक्षा को सबसे सशक्त माध्यम मानते थे।

1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद का हुआ गठन
इसी ध्येय से उन्होंने 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद का गठन कर किराए के एक कमरे में पहली शिक्षण संस्था की स्थापना की। इसके पीछे एक कहानी भी है। उनके एक शिक्षक को अंग्रेजों ने स्कूल से निकाल दिया था। यह बात जब दिग्विजयनाथ जी को पता चली तो उन्होंने शिक्षक के सम्मान के लिए महाराणा प्रताप के नाम पर स्कूल खोला। बाद में यही महाराणा प्रताप इंटर कॉलेज के रूप में विकसित हुआ। आज भी इसमें करीब 5000 छात्र हैं। 1949-50 में महाराणा प्रताप डिग्री कालेज की स्थापना महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् का अगला पड़ाव था जो बाद में गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना का स्तम्भ बना।

गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना में भी गोरक्षपीठ की भूमिका
गोरखपुर के मौजूदा पंडित दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय की स्थापना के पीछे भी गोरक्षपीठ की महती भूमिका रही है। 15 अगस्त 1947 को आजादी मिलने के बाद गोरखपुर शहर के मानिंद लोग दिग्विजयनाथ जी के पास आए और उन्होंने गोरखपुर में एक विश्वविद्यालय स्थापना कराने का अनुरोध किया। दिग्विजयनाथ जी इन लोगों को लेकर तत्कालीन अंतरिम मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत जी से मिले लेकिन पंत जी ने सरकारी खजाना खाली होने की बात की।

पंत जी ने कहा कि विश्वविद्यालय वहां खुलेगा जहां लोग 50 लाख रुपए की राशि या उतने की प्रॉपर्टी का सहयोग करेंगे। उस समय गोरखपुर में दो कॉलेज थे महाराणा प्रताप कॉलेज और सेंट एंड्रयूज कॉलेज। सेंट एंड्रयूज कॉलेज चर्च चलाती थी। यह तय हुआ कि इन दोनों कॉलेजों की संपत्ति 50 लाख से अधिक की है। इन्हें सरकार को देकर विश्वविद्यालय की स्थापना कराई जा सकती है।

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