हिमाचल प्रदेश में 13 जून से लेकर अब तक मानसून के करीब तीन महीने में बारिश के कारण 435 लोगों की मौत हो चुकी है और 1,174 करोड़ की संपत्ति का नुकसान हुआ है। इन मौत में मानसून के दौरान सड़क दुर्घटनाओं में हुई मौत भी शामिल हंै। यह सरकार का प्रारंभिक आकलन है। प्रदेश में मानसून ने इस बार सबसे ज्यादा तबाही मचाई है। 12 सैलानी हादसे के शिकार हुए हंै। 13 जून से लेकर अब तक इन तमाम हादसों में 611 लोग घायल हुए हैं और 12 लोग अभी भी लापता हंै। इनमें से अधिकांश या तो बह गए थे, या फिर मलबे के नीचे कहीं दबे पड़े हैं। सरकार के आंकड़ों के मुताबिक 692 पशुओं की मौत हुई है। 734 गऊशालाएं तबाह हुई हैं। 180 कच्चे व पक्के घर पूरी तरह से तबाह हो गए हैं, जबकि नौ सौ के करीब घरों को आंशिक नुकसान पहुंचा है। इसके अलावा कम से कम आठ पुल भी क्षतिग्रस्त हुए हैं।
शुरुआती आकलन के मुताबिक लोक निर्माण विभाग ने ही सड़कों, पुलों और डंगों के गिरने से ही 684 करोड़ के नुकसान का आकलन लगाया है। जबकि जल शक्ति विभाग की ढेरों योजनाओं को भी नुकसान हुआ है। जल शक्ति विभाग ने अपने विभाग का 297 करोड़ रुपए के नुकसान का आकलन लगाया है। बिजली विभाग का 60 करोड़ और शहरी विकास विभाग का 102 करोड़ रुपए का नकसान हुआ है। यह आकलन फोरी तौर पर है।असल में यह नुकसान कहीं अधिक हुआ है। जिन लोगों की जानें गई हैं उस नुकसान का तो कभी आकलन भी नहीं किया जा सकता और भरपाई भी नहीं की जा सकती। यह नुकसान तो केवल मानसून का ही है। अब आगे सर्दी का मौसम आने वाला है व बर्फबारी से होने वाला नुकसान अलग से होगा।
इतनी बड़ी मानवीय व अन्य क्षति मानसून में इससे पहले कभी नहीं हुई। मानसून के दौरान बाढ़ और भूस्खलन के जीवंत भयावह दृश्य जिस तरह इस बार देश दुनिया ने देखे, वे रौंगटे खड़े कर देने वाले थे। यही नहीं बाढ़ व भूस्खलन की रौंगटे खड़े कर देने वाली घटनाओं के कारण ही प्रदेश में होने वाले उपचुनावों तक स्थगित करना पड़ा है। अब से पहल बर्फबारी की वजह से तो चुनाव स्थगित होते रहे हंै लेकिन बाढ़ और भूस्खलन की वजह से संभवतया यह पहली बार है कि उपचुनाव टाले गए हों। हालांकि चुनाव टालने के पीछे अन्य कारण भी हो सकते हंैं लेकिन इन प्राकृतिक आपदाओं की आड़ तो ली ही गई है। बहरहाल, अब मानसून समाप्ति की ओर है लेकिन भूस्खलनों व हादसों का सिलसिला अभी भी जारी है। प्रदेश में जिस तरह की बाढ़ और भूस्खलन इस बार मानसून में आए हंै उस तरह की घटनाएं पड़ोसी हिमालयी राज्य उतराखंड में होती रहती थी। हिमाचल बड़े नुकसानों से अछूता था।
इस मानसून में प्राकृतिक आपदाओं से हुए नुकसान ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। पहला यह कि क्या यह प्राकृतिक आपदाएं मानव निर्मित हैं। इसके जवाब में अधिकाशं विशेषज्ञ हामी भरते रहे हैं। दूसरे, जो नुकसान हो रहा है क्या प्रदेश उसकी भरपाई अपने स्तर पर करने की क्षमता रखता है और अगर नहीं तो केंद्र से कितनी भरपाई होती है। अब तक का इतिहास यह रहा है कि प्राकृतिक आपदाओं को लेकर प्रदेश सरकारें बड़ा आंकड़ा केंद्र सरकार के समक्ष पेश कर देती हंै लेकिन केंद्र से बहुत कम राशि राहत और मुआवजे के तौर पर मिलती रही है। लेकिन यह स्थिति बदलनी चाहिए। प्रदेश के पास पहले से ही आय के संसाधन बेहद कम है और जो हैं भी वह इस तरह प्राकतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान की भरपाई पर खर्च हो जाते है। ऐसे में केंद्र को हिमाचल ही नहीं तमाम पहाड़ी राज्यों को प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान की एवज की भरपाई के लिए अलग से नीति तैयार करनी चाहिए।
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