आश्चर्य इस बात को लेकर नहीं होना चाहिए कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने पिछले हफ्ते कहा कि 2017 से पहले लोगों को राशन नहीं मिलता था, क्योंकि ‘अब्बाजान कहने वाले लोग उसको हजम कर जाते थे’। आश्चर्य होना चाहिए सिर्फ इस बात से कि कई लोगों को सुनकर आश्चर्य हुआ। कई जाने-माने राजनीतिक पंडित भी इनमें थे।
योगी आदित्यनाथ ने कभी छिपाने की कोशिश नहीं की है कि वे उत्तर प्रदेश के हिंदुओं के राजनेता हैं, मुसलमानों के नहीं। याद कीजिए कि वे राजनीति में आए थे उस समय जब रामजन्मभूमि का आंदोलन छिड़ा था और रामलला का मंदिर बनाने के लिए उन्होंने अपनी हिंदू युवा वाहिनी तैयार की थी, जो अब भी उनके चुनाव क्षेत्र गोरखपुर में हावी है।
जब 2017 में प्रधानमंत्री मोदी ने उनको उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर बिठाया था, मैं गोरखपुर गई बहुत सालों बाद, इस बात को समझने कि योगी में कौन-सी खास चीज थी, जिसको लेकर गोरखपुर के मतदाताओं ने उनको बीस वर्ष तक अपना सांसद बना कर दिल्ली भेजा था। सच पूछिए तो इस शहर की सड़कों, बाजारों का इतना बुरा हाल है कि समझने में वक्त लगा।
उनकी लोकप्रियता का राज तभी समझ में आया जब उनके मंदिर के परिसर में हिंदू युवा वाहिनी के कार्यालय में पहुंची और वहां उनके कार्यकर्ताओं से बातचीत हुई। उन्होंने मुझे समझाया कि हिंदू युवा वाहिनी का अयोध्या में ‘भव्य राम मंदिर’ निर्माण के अलावा एक ही लक्ष्य है और वह है हिंदू महिलाओं को मुसलमानों से बचाना।
सो, निजी तौर पर मुझे बिल्कुल ताज्जुब नहीं हुआ जब मुख्यमंत्री बनने के फौरन बाद योगी ने यूपी के थानों में रोमियो स्क्वॉड बनाए तथाकथित लव जिहाद को रोकने के लिए। योगी आदित्यनाथ की रजनीति का आधार है मुसलमानों की तरफ ऐसे देखना जैसे कि वे दूसरे दर्जे के नागरिक हों।
जिस भाषण में उन्होंने वह अब्बाजान वाली बात कही, उसी भाषण में उन्होंने यह भी कहा कि जबसे मुख्यमंत्री बने हैं, उन्होंने प्रधानमंत्री के नारे को यथार्थ में बदल कर दिखाया है। सबका साथ, सबका विकास, सब का विश्वास, लेकिन तुष्टीकरण किसी का नहीं।
सवाल है कि अगर मुसलमानों ने इस ‘तुष्टीकरण’ का लाभ उठा कर सबका राशन हजम कर लिया था कांग्रेस के दशकों लंबे ‘सेक्युलर’ दौर में तो ऐसा क्यों है कि उत्तर प्रदेश के कई जिलों में उनका हाल दलितों से भी बदतर है।
उनकी बस्तियों में गंदी नालियां, कच्चे मकान, टूटी सड़कें और बिजली-पानी का सख्त अभाव क्यों है? ऐसा क्यों है कि उनके बच्चों को मजबूरन मदरसों में पढ़ना पड़ता है, क्योंकि उनके इलाकों में सरकारी स्कूल अक्सर नहीं होते हैं?
मैंने जब अपने एक कट्टरपंथी हिंदू दोस्तों से ये सवाल किए, तो यह जवाब मिला, ‘तो क्या सच नहीं है कि जब मुसलमान हज पर जाते हैं तो उनके आने-जाने का खर्चा सरकार उठाती है? क्या सच नहीं है कि जब डॉक्टर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने कहा था कि इस देश के धन और संपदा पर पहला अधिकार मुसलमानों का होना चाहिए?’
उनका यह जवाब क्या सुना कि मैंने देखा कि डॉक्टर साहब का वही भाषण सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था। मैंने चूंकि योगी की आलोचना ट्वीट में की थी, मुझे इस भाषण की क्लिप कई लोगों ने भेजा और याद आया मुझे कि कांग्रेस पार्टी के ‘सेक्युलर’ राजनेताओं ने मुसलमानों का उतना ही इस्तेमाल किया, जितना भारतीय जनता पार्टी कर रही है। कांग्रेस ने झूठी मोहब्बत दिखाई इस कौम को वोट बैंक बनाने के लिए और भाजपा के राजनेता अब सच्ची नफरत दिखाते हैं।
मुसलमानों की समस्या यह है कि 2019 के लोकसभा चुनावों ने साबित किया कि भारतीय जनता पार्टी उनके वोटों के बिना जीत सकती है। लेकिन भाजपा के आला नेताओं को यकीन है कि चुनावों में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच नफरत फैलाने से उनको लाभ पहुंचता है। योगी का ‘अब्बाजान’ वाला भाषण चुनावी शंखनाद था।
बार-बार तुष्टीकरण की बातें होंगी। बार-बार नफरत फैलाने की कोशिश होगी और अगर यह नफरत हिंसा में बदल जाए तो यह रणनीति और भी सफल हो सकती है, इसलिए कि उत्तर प्रदेश के मतदाता शायद भूल जाएंगे कि कोविड के दूसरे भयानक दौर में उनके मुख्यमंत्री अदृश्य हो गए थे जब अस्पतालों के सामने कतारें लग गई थीं ऑक्सीजन और बिस्तरों के लिए। जब श्मशानों में दिन-रात जलती थीं चिताएं, जब गंगाजी में लाशें बहती थीं। योगी आदित्यनाथ ने इन सब बातों को शुरू से अस्वीकार किया है यह कह कर कि ऐसा कुछ नहीं हुआ था और यह सब झूठा प्रचार है विपक्ष का।
सत्य को असत्य कहने में माहिर हैं योगी। पिछले हफ्ते हाथरस की उस दलित बेटी की दर्दनाक मौत के बाद एक साल पूरा हुआ। याद कीजिए किस तरह योगी के अधिकारियों ने उस बच्ची की लाश को आधी रात को जला दिया बिना अंतिम संस्कार की रस्मों के।
याद कीजिए किस तरह योगी सरकार ने साबित करने की कोशिश की थी कि हाथरस में जो कुछ हुआ उसके पीछे एक अंतरराष्ट्रीय साजिश थी उत्तर प्रदेश को बदनाम करने के लिए। इन सारी बातों को भुलाने के लिए योगी सरकार ने प्रचार की ऐसी मुहिम चलाई है जैसे कि शायद ही पहले किसी विधानसभा चुनाव के समय दिखी हो।
टीवी पर मुश्किल से कोई शो होगा, जिसमें नहीं दिखते हैं योगी के इश्तेहार कम से कम एक बार। ये ऐसे इश्तेहार हैं जो पेश आते हैं समाचार के रूप में, प्रचार के रूप में नहीं, ताकि भोली-भाली जनता समझ न पाए प्रचार और समाचार का अंतर। सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास के पर्दे के पीछे योगी की चुनावी रणनीति कुछ और ही है।
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