कोर्ट रूम ड्रामे पर बनी फिल्मों को सराहना मिलती रही हैं।
कोर्ट रूम ड्रामे पर बनी फिल्मों को सराहना मिलती रही हैं। किसी सामाजिक सरोकार के मुद्दे को उठाना और गले उतर सकने वाली दलीलों के जरिए परदे पर पेश करने के प्रयास हिंदी फिल्मों में लंबे समय से होते रहे हैं। 1960 में फांसी की सजा के विरोध में बनी बीआर चोपड़ा की ‘कानून’ खूब सराही गई थी। 1983 में अमिताभ बच्चन रजनीकांत की ‘अंधा कानून’ में एक ही अपराध की दो बार सजा देने के मुद्दे को उठाया गया था। यह फिल्म भी खूब चली। कानूनी दांवपेचों पर बनी हाल ही में रिलीज हुई है अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘चेहरे’ जिसे सफलता नहीं मिली मगर इसकी सराहना की जा रही है। ऐसी ही फिल्मों के सफर पर एक नजर।
कानूनी दांवपेचों और अदालत में वकीलों की दलील सुनने का अपना अलग रोमांच है। लोकप्रिय सितारे जब वकीलों का काला कोट पहनकर दलीलें देते हैं तो उनके प्रशंसक तालियां बजाते नजर आते हैं। हालिया प्रदर्शित फिल्म ‘चेहरे’ में अमिताभ बच्चन, इमरान हाशमी की दमदार एक्ंिटग के साथ उनकी दलीलों को भी दर्शकों ने खूब सराहा। इसी तरह ‘नेल पॉलिश’ फिल्म के कोर्ट रूम ड्रामे को भी सिनेमा प्रेमियों ने पसंद किया। ‘सेक्सन 375’ नामक फिल्म की कहानी बलात्कार के एक झूठे मामले पर आधारित थी। मुख्य कलाकार अक्षय खन्ना और ऋचा चड्ढा के बतौर वकील सशक्तअभिनय की भी खूब तारीफें हुईं।
आर माधवन अभिनीत अंग्रेजी, हिंदी और तमिल भाषा में बन रही ‘रॉकेट्री द नम्बी इफैक्ट’ फिल्म काफी चर्चा में है। फिल्म की कहानी एक ऐसे वैज्ञानिक नम्बी नारायण की है जिस पर जासूस होने का झूठा आरोप लगा है। इस फिल्म में वैज्ञानिक को झूठे आरोप से बचाने के लिए काफी कानूनी दांवपेचों का इस्तेमाल किया गया है ताकि सच सामने लाया जा सके। फिल्म रिलीज के लिए तैयार है। इसके अलावा अजय देवगन अभिनीत ‘दृश्यम 2’ में भी कोर्ट रूम ड्रामा दिखाया गया है।
सनी देओल की फिल्म ‘दामिनी’ का भी पार्ट 2 आने जा रहा है जिसमे सनी देओल और उनके बेटे करण देओल नजर आएंगे। ‘दामिनी 2’ भी अदालती पृष्ठभूमि पर है। ‘दामिनी’ में सनी देओल बतौर वकील जिरह करते नजर आए थे और फिल्म में उनका संवाद-जब ये ढाई किलो का हाथ किसी पर पड़ता है न तो आदमी उठता नहीं उठ जाता है आज तक लोकप्रिय है। जहां एक तरफ कानूनी दांवपेच पर आधारित फिल्में सफल हो रही हैं, वहीं दूसरी तरफ आयुष्मान खुराना अभिनीत ‘आर्टिकल 15’ की सफलता को देखते हुए सेक्सन, धारा और आर्टिकल जैसे कानूनी शब्दावली के नामों पर आधारित फिल्मों का निर्माण शुरूहो गया है। उनके लिए खास तौर पर कहानियां भी लिखी जा रही हैं। निर्माताओं ने अपनी संस्थाओं में कानून से जुड़े कई शीर्षकों का पंजीयन भी करवाना शुरू कर दिया है। रजिस्टर हुए ऐसे नामों में शामिल हैं- सेक्शन 37, सेक्शन 376, सेक्सन 302, आर्टिकल 302, आर्टिकल 14, आर्टिकल 35 ए, सेक्शन 420 आदि।
दलीलें फिट तो फिल्में हिट
1960 में बनी फिल्म ‘कानून’ काफी हिट हुई थी। रजनीकांत की पहली फिल्म ‘अंधा कानून’ में तो एक ही अपराध के लिए दोबार सजा दिए जाने का मामला उठाया गया था। अनिल कपूर अभिनीत ‘मेरी जंग’ का नायक वकील तो जरूरत पड़ने पर भरी अदालत में जहर तक पी जाता है। करीना कपूर की बतौर वकील सशक्त अभिनय वाली फिल्म ‘एतराज’ में एक पत्नी अपने पति को बलात्कार के आरोप से बचाने के लिए खुद काला कोट पहन कर अदालत में उतर जाती है और अपनी दलीलों से मुकदमे का रुख मोड़ देती है। परेश रावल अभिनीत ‘ओ माय गॉड’ में तो सीधे भगवान के अस्तित्व को ही अदालत में चुनौती दी जाती है। इनके अलावा, डैनी, सुरेश ओबेराय की ‘काूनन क्या करेगा’, रानी मुखर्जी और विद्या बालन की ‘नो वन किल्ड जेसिका’, अरशद वारसी की ‘जॉली एलएलबी’, और अक्षय कुमार अभिनीत ‘जॉली एलएलबी 2’, सनी देओल की बतौर वकील फिल्म ‘दामिनी’, अजय देवगन अभिनीत ‘दृश्यम’ जैसी कोर्ट रूम ड्रामा फिल्मों ने अच्छी कमाई की और दर्शकों का मनोरंजन भी किया।
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