जब संजीव कुमार के लिए परवान चढ़ा हेमा मालिनी का प्यार, बिगड़ गई थी दोनों के बीच बात!



हेमा को देख कर धर्मेंद्र उनकी खूबसूरती के कायल हो गए थे। उस वक्त हेमा मालिनी के दिल में धर्मेंद्र के लिए कुछ नहीं था। उस रोज हेमा मालिनी का सारा फोकस उनके करियर और फिल्मों पर था। वह एक बड़ी हिट की तमन्ना रखती थीं।

हेमा मालिनी और धर्मेद्र की पहली मुलाकात ख्वाजा एहमद अब्बास की फिल्म ‘आस्मां महल’ के प्रेमियर पर हुई थी। उस वक्त हेमा मालिनी की सिर्फ एक फिल्म ही रिलीज हुई थी- सपनों का सौदागर। हेमा की वो फिल्म फ्लॉप हो गई थी। वहीं धर्मेंद्र स्टार बन गए थे। इधर, हेमा को देख कर धर्मेंद्र उनकी खूबसूरती के कायल हो गए थे। उस वक्त हेमा मालिनी के दिल में धर्मेंद्र के लिए कुछ नहीं था। उस रोज हेमा मालिनी का सारा फोकस उनके करियर और फिल्मों पर था। वह एक बड़ी हिट की तमन्ना रखती थीं।

फिर हेमा मालिनी ने संजीव कुमार के साथ एक फिल्म साइन की ‘धूप छांव’। फिल्म की मेकिंग के दौरान हेमा मालिनी संजीव कुमार के प्रति आकर्षित हुईं। हेमा के मन में संजीव के लिए प्यार के अंकूर फूटने लगे थे। संजीव भी इसबात को भली तरह समझ रहे थे।

तभी फिल्म किसी वजह से रुक गई। पर हेमा मालिनी और संजीव कुमार के बीच बातचीत जारी रही। इतना ही नहीं संजीव कुमार तो हेमा के घर शादी का रिश्ता तक लेकर जा पहुंचे थे। लेकिन जया चक्रवर्ती ने संजीव कुमार संग बेटी का रिश्ता जोड़ने से साफ इनकार कर दिया और कहा कि हम तो अपनी जात बिरादरी में ही बेटी की शादी करेंगे। हेमा के लिए हमने लड़का देखा भी हुआ है।

ऐसे में हेमा मालिनी भी मां के सामने कुछ न बोल पाईं। अब हेमा मालिनी मायूस हो गई थीं और कुछ शांत रहने लगी थीं कि तभी हेमा की लाइफ में धर्मेंद्र ने दस्तक दी। दोनों को उस दौरान ‘तू हसीन मैं जवां’ में काम करने का मौका मिला। इस फिल्म के बाद से ही हेमा मालिनी और धर्मेंद्र के बीच करीबियां आने लगी थीं।

हेमा मालिनी ने अपनी बायोग्राफी ‘बियोंड द ड्रीमगर्ल’ में बताया था कि उन्होंने धर्मेंद्र से दूर होने की काफी कोशिश की थी, लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाई थीं। दूसरी ओर धर्मेंद्र भी उनसे अचानक उनसे सवाल कर बैठे थे।

इस बारे में हेमा मालिनी ने अपनी किताब में बताया था, “मैं उन्हें पसंद करती थी और इस बात से भी मैं पीछे नहीं हट सकती कि वह एक आकर्षक व्यक्ति थे। मैंने खुद को उनसे दूर करने की बहुत कोशिश की थी, लेकिन मैं ऐसा करने में नाकाम रही। उनमें स्वाभाविक रूप से कुछ तो अच्छा था।”



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