जैसे गांधी परिवार ने अपने आसपास इकट्ठा किए हैं चापलूसी और झूठी प्रशंसा करने वाले लोग, बिल्कुल वैसे लोग आज दिखते हैं प्रधानमंत्री को घेरे हुए। यही कारण है कि जब कोविड की भयानक दूसरी लहर आई थी तो प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को इसके बारे में तभी पता लगा जब बहुत देर हो चुकी थी।
जिस तरह उस ‘हाई कमांड’ ने एक ऐसे बंदे का साथ दिया, जो बच्चों कि तरह जिद करता दिखा, जब मुख्यमंत्री के जाने के बाद उसकी सारी बातें को माना नहीं गया। सबूत है कि सात साल विपक्ष में रह कर भी, बार-बार चुनाव हारने के बाद भी, देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी ने कुछ नहीं सीखा है। न अपनी गलतियों से और न इतिहास से।
सबसे पहले बात करते हैं इस ‘हाई कमांड’ की। समझदार, संगीन लोकतांत्रिक देशों में इस किस्म की चीज होती नहीं है, क्योंकि लोकतंत्र के मायने हैं समानता उन सब प्रतिनिधियों में, जो जनता चुन कर भेजती है अपने अधिकारों को सुरक्षित रखने को। ‘हाई कमांड’ सेनाओं में होते हैं, राजनीतिक दलों में नहीं, लेकिन चूंकि कांग्रेस पार्टी को एक शाही परिवार ने चलाया है दशकों से, इस दल के सदस्य भूल गए हैं लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांत। भूल गए हैं कि जब किसी एक परिवार के हवाले पूरे राजनीतिक दल को किया जाता है, तो वह दल तो कमजोर होता ही है, साथ में लोकतंत्र भी कमजोर होता है।
इतना कमजोर कि कद्दावर राजनेता इतने बौने बन जाते हैं कि अध्यक्ष उस शाही परिवार के किसी भी सदस्य को बनाने को तैयार हो जाते हैं। राजीव गांधी की हत्या के बाद जब उनकी पत्नी को उनकी जगह लेने का प्रस्ताव पेश किया कांग्रेस की कार्यकारणी समिति ने, तो न सोनिया गांधी हिंदी ठीक से बोल पाती थीं और न जानती थीं देश की रजनीति के बारे में।
बाद में खुशामदी किस्म के पत्रकारों ने कहना शुरू किया कि उन्होंने इंदिरा गांधी से राजनीति के बारे में सब कुछ सीखा था, लेकिन यह सच नहीं, सरासर झूठ है। इंदिरा जी का उसूल था कि घर के अंदर पॉलिटिक्स की बातें नहीं होनी चाहिए और सोनिया जी अक्सर उस समय प्रधानमंत्री के घर को ही संभालती थीं।
जिस ऊंचाई पर पहुंची हैं तबसे अब तक वह काबिले-तारीफ है, लेकिन साथ में यह भी कहना जरूरी है कि अगर उनको अपने परिवार की चिंता कांग्रेस से ज्यादा न होती तो यह नौबत न आती, जो अब है। उनके बच्चों को किसी मुख्यमंत्री के विरोध में बगावत छेड़ने का अधिकार न दिया होता सोनिया जी ने तो जो तमाशा हमने एक ऐसे सीमा तटीय राज्य में देखा है, वह न होता। और वह भी ऐसे समय, जब अस्थिरता पहले से है किसानों के लंबे आंदोलन के कारण।
अब एक नसीहत भारतीय जनता पार्टी के उन राजनेताओं के लिए, जो कांग्रेस में तमाशा देख कर हंस रहे हैं। अपने गिरेबान में झांक कर देखें। उनके दल में भी अब ‘हाई कमांड’ बन गया है। सारे फैसले करते हैं दो ही बंदे: प्रधानमंत्री और गृहमंत्री। सो, चाहे किसी मुख्यमंत्री को हटाना हो या किसी राज्य सरकार के मंत्रिमंडल में फेर-बदल होनी हो, बिना ‘हाई कमांड’ की इजाजत के कुछ नहीं हो सकता है।
मैंने जब नरेंद्र मोदी का समर्थन किया था शुरू में, तो इस उम्मीद से कि वे हमारी राजनीतिक सभ्यता में जो इस किस्म की कमजोरियां आई हैं उनको समाप्त कर देंगे। लेकिन ऐसा करने के बदले उन्होंने वही पुरानी कांग्रेसी राजनीतिक सभ्यता को बाहें खोल कर अपना लिया है। सो, अब भारतीय जनता पार्टी में भी अंदरूनी लोकतंत्र सिर्फ कागजी रह गया है। न यह भारतीय जनता पार्टी के लिए अच्छा है और न भारत के लिए।
जैसे गांधी परिवार ने अपने आसपास इकट्ठा किए हैं चापलूसी और झूठी प्रशंसा करने वाले लोग, बिल्कुल वैसे लोग आज दिखते हैं प्रधानमंत्री को घेरे हुए। यही कारण है कि जब कोविड की भयानक दूसरी लहर आई थी तो प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को इसके बारे में तभी पता लगा जब बहुत देर हो चुकी थी। इतना बुरा हाल हो गया था तब तक कि कुछ दिनों के लिए न प्रधानमंत्री दिखे और न गृहमंत्री।
जब आखिर में प्रधानमंत्री सामने आए देश को संबोधित करने, तो भावुक होकर उन्होंने स्वीकार किया कि ‘हमारे कुछ लोग चले गए हैं’। लेकिन इसके फौरन बाद भारतीय जनता पार्टी की प्रचार मशीन हरकत में आई और सारी कहानी बदलने का काम किया गया।
टीकों का गंभीर अभाव ढकने के लिए लग गए बड़े-बड़े पोस्टर ‘धन्यवाद मोदी’ कहने के लिए। और उत्तर प्रदेश जब पहुंचे प्रधानमंत्री तो उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि कोविड को हराने में इतना अच्छा काम योगी सरकार ने किया है, वैसा किसी दूसरी सरकार ने नहीं किया है।
असत्य को सत्य करना भी भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस से सीखा है। आज जिस तरह भारतीय जनता पार्टी अपने राजनेताओं का प्रचार करती है, उसको देख कर याद आता है इंदिरा गांधी का वह दौर, जब उन्होंने लोकतंत्र को ताक पर रख कर अपने आपको तानाशाह बना दिया था।
उसी दौर में उन्होंने कांग्रेस पार्टी को अपनी निजी विरासत समझ कर अपने बेटे को सौंप दी थी, उसी दौर से शुरू हुआ था हाई कमांड का निर्माण। उसी दौर में नींव रखी गई थी एक ऐसी राजनीतिक सभ्यता की, जिसमें राजनेता देश की परवाह से ज्यादा परवाह करने लगे अपने परिवारों की।
आज इतनी मजबूत हो गई है यह राजनीतिक सभ्यता कि जिस प्रधानमंत्री ने हाल में संयुक्त राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा था गर्व से कि बचपन में वे चाय बेचा करते थे, इन दिनों पेश आते हैं अपने देशवासियों के सामने जैसे उनके प्रधान सेवक नहीं, एक देवता हों, जिसकी रोज पूजा होनी चाहिए।
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