आर्थिक प्रगति से समानता की ओर बढ़ना

आर्थिक प्रगति से समानता की ओर बढ़ना

Date:08-10-21

गत माह, उच्चतम न्यायालय में हुई चार महिला न्यायाधीशों की नियुक्ति, उत्सव का विषय बन गई है। इसका अर्थ है कि देश के सर्वोच्च न्यायालय में महिलाओं की 12% भागीदारी हो गई है, और 2027 में न्यायाधीश नागरत्ना के मुख्य न्यायाधीश पद पर आसीन होने की संभावना बन गई है। देश की आबादी का लगभग 50% होने के बावजूद, स्वतंत्रता के 75 वर्षों के पश्चात् भी महिलाओं को ऐसी भागीदारी को निराशाजनक कहा जाना चाहिए। इस स्थिति को बेहतर बनाया जाना चाहिए। मगर कैसे?

  • मुख्य न्यायाधीश रमन्ना का मत है कि न्यायपालिका में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण हो।
  • संसद और नौकरशाही में भी महिलाओं की भागीदारी उल्लेखनीय नहीं कही जा सकती है।
  • संविधान के 73वें और 74वें संशोधन से पंचायतों और नगर पालिकाओं में महिलाओं को 33% आरक्षण दिया जा चुका है। इसका विस्तार विधानसभा और संसद तक क्यों नहीं किया जा सकता।

          आधी आबादी होने के नाते नीति निर्धारण में महिलाओं की समुचित भूमिका होनी चाहिए।

  • विडंबना है कि देश में महिलाओं ने कभी आरक्षण की मांग ही नहीं की है।

          विदेशों का उदाहरण लें, तो हम पाते है कि आइसलैण्ड की संसद में महिलाओं की बहुलता है।

  • कुल कार्यबल में भी महिलाओं का प्रतिशत बहुत कम है। कोविड एवं सरकारी नीतियों के चलते लगने वाले मैक्रोइकॉनॉमिक झटकों से महिलाओं की जगह पुरूषों ने ले ली है।

महिलाओं की स्थिति को सशक्त बनाने के लिए उन्हें आर्थिक और सामाजिक रूप से सबल बनाया जाना चाहिए। इस हेतु उत्कृष्ट आर्थिक नीतियों को तैयार करने, महिलाओं को परामर्श देने और भर्ती करने में निवेश किया जाना चाहिए। इस माध्यम से शायद उनके पिछडेपन को दूर किया जा सके।

          महिलाओं के पिछड़ेपन या देश में लैंगिक समानता के लक्ष्य की प्राप्ति का एकमात्र मार्ग आरक्षण नहीं हैं।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 28 सितंबर, 2021

The post आर्थिक प्रगति से समानता की ओर बढ़ना appeared first on AFEIAS.


Post a Comment

और नया पुराने