इमरान खान की अदूरदर्शिता, खराब शासन व्यवस्था और आतंकियों के प्रति लचर नीति देश में राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ावा दे रही है।
इमरान खान की अदूरदर्शिता, खराब शासन व्यवस्था और आतंकियों के प्रति लचर नीति देश में राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ावा दे रही है। इससे संवैधानिक व्यवस्थाएं ठप होने और कट्टरपंथी ताकतें मजबूत होने का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है।
धार्मिक अराजकतावाद के समर्थक उदार और बहुल राजनीतिक व्यवस्था के विरुद्ध होते हैं। ऐसे व्यक्ति या समूह वैधानिक सरकार को अनावश्यक और अवांछनीय मानकर उसे उखाड़ फेंकना चाहते हैं। पाकिस्तान की राजनीति में यही हो रहा है। यहां राजनीतिक व्यवस्था में धार्मिक, कट्टरपंथी और रुढ़िवादी संगठनों से कोई परहेज नहीं किया जाता। जरूरत पड़ने पर राजनीतिक दल सत्ता हासिल करने के लिए इनका हथियार की तरह इस्तेमाल करते आए हैं।
दरअसल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने देश के एक प्रतिबंधित धार्मिक और राजनीतिक संगठन तहरीक-ए-लब्बैक के हिंसक आंदोलन से निपटने के लिए माफी और रिहाई का राजनीतिक दांव खेला है। बीते कई दशकों से पाकिस्तान की राजनीतिक सत्ताएं कानून और संवैधानिक नियमों को दरकिनार कर कट्टरपंथी ताकतों की धार्मिक मांगों पर सहमति के संकेत देती रही हैं। यह भी देखने में आया है कि पाकिस्तान में सेना, आइएसआइ, धार्मिक, आतंकी और राजनीतिक संगठनों में बड़ी जुगलबंदी रही है और ये सर्वोच्च राजनीतिक सत्ता के बेहद करीब भी होते हैं।
इस्लामिक आंदोलन के रूप में तहरीक-ए-लब्बैक का गठन एक अगस्त 2015 को कराची में हुआ था। कट्टरपंथी प्रदर्शनों और धार्मिक मांगों को लेकर यह संगठन पाकिस्तान में बेहद प्रभावशाली धार्मिक और राजनीतिक संगठन के रूप में उभरा है जिसे रसूल अल्लाह इस्लामिक संगठन के नाम से भी जाना जाता है। यह देश में शरिया कानून लागू करने की मांग कर रहा है। साथ ही, फ्रांस से पाकिस्तान के राजनयिक रिश्ते खत्म करने की मांग को लेकर हिंसक आंदोलन भी करता रहा है। गौरतलब है कि फ्रांस की सरकार अभिव्यक्ति की आजादी की मुखर समर्थक रही है, वहीं दुनिया के कई इस्लामिक देश इसे ईशनिंदा की तरह देखते हैं।
फ्रांस की सरकार ने आतंकी हमलों को रोकने के लिए अपने यहां मुसलमानों पर कई प्रतिबंध लगा रखे हैं। पाकिस्तान में धार्मिक संगठन इसका कड़ा विरोध करते रहे हैं। इमरान खान सार्वजनिक रूप से यह कह चुके हैं कि फ्रांस के राजदूत को वापस भेजने जैसे कदम से पाकिस्तान और फ्रांस के रिश्ते बिगड़ सकते हैं और इससे पाकिस्तान का आर्थिक संकट गहरा सकता है। वहीं यूरोपियन संघ का साफ कहना है कि वैदेशिक संस्थानों की सुरक्षा के संबंध में पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन सुनिश्चित करे।
इमरान खान के सामने पाकिस्तान को आतंकवादियों के हिमायती देशों की सूची से बाहर निकालने की चुनौती बरकरार है। वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) की निगरानी सूची में बने रहना देश की अर्थव्यवस्था के लिए दिनोंदिन घातक साबित हो रहा है। इससे पाकिस्तान को हर साल करीब दस अरब डालर का नुकसान हो रहा है। इमरान खान को डर सता रहा है कि एफएटीएफ पाकिस्तान को काली सूची में डाल देने का फैसला कर लेता है तो अर्थव्यवस्था पर संकट और गहरा जाएगा।
इस आर्थिक संकट और कट्टरपंथी ताकतों के हिंसक प्रदर्शनों के बीच इमरान खान का राजनीतिक व्यवहार भी बेहद लचर नजर आ रहा है। यह किसी से छिपा नहीं है कि इमरान खान ने सत्ता की सीढ़ियां जिस तेजी से चढ़ी हैं, उसमें कट्टरपंथी संगठनों से उनके रिश्तों और उनके समर्थन की अहम भूमिका रही है। वैश्विक दबाव के बाद भी इमरान खान ने हाफिज सईद जैसे आतंकियों की आलोचना करने से परहेज किया।
संयुक्त राष्ट्र की तरफ से अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित हाफिज सईद को लेकर पाकिस्तान की भूमिका संशय बढ़ाती रही है। उसे कई बार गिरफ्तार किया गया और गुपचुप रिहा भी कर दिया गया। आतंकी वित्त पोषण के जुर्म में उसे दस साल से ज्यादा की सजा हुई थी। वहीं पाकिस्तान की एक अदालत ने मुंबई हमलों के इस साजिशकर्ता को दो और मामलों में दस साल कैद की सजा सुनाई थी। लेकिन इन सबके बाद भी हाफिज सईद के सार्वजनिक जीवन में कोई बदलाव नहीं आया। उसे देश में अतिविशिष्ट सुविधाएं और सुरक्षा हासिल है।
इमरान खान बेनजीर भुट्टो की हत्या के लिए जिम्मेदार माने जाने वाले आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के प्रति उदार व्यवहार के लिए भी आलोचना झेलते रहे हैं। यह आतंकी संगठन पाकिस्तान में शरिया पर आधारित एक कट्टरपंथी इस्लामी शासन कायम करना चाहता है। पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर मौजूद इलाकों में टीटीपी का खासा प्रभाव है। इस संगठन पर पाकिस्तान में चरमपंथ की कई घटनाओं को अंजाम देने का आरोप है।
इस साल अगस्त में अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता वापसी के बाद अफगानिस्तान-पाकिस्तान सरहदी इलाकों में टीटीपी का प्रभाव बढ़ गया है। कुछ दिनों पहले इमरान खान ने टीटीपी से सख्ती से निपटने की बजाय यह अपील की थी कि टीटीपी से जुड़े लोग हथियार डाल देंगे तो उन्हें माफ कर दिया जाएगा और वे आम लोगों की तरह जीवन बिता सकेंगे। गौरतलब है कि टीटीपी ने 16 दिसंबर 2014 में पेशावर के आर्मी पब्लिक स्कूल पर हमला कर एक सौ चौंतीस बच्चों को मार डाला था। इसके बाद जब इमरान खान इस स्कूल में पहुंचे थे तब आतंकियों के प्रति इसी तरह के उदार रुख के कारण हमले में मरने वाले बच्चों के परिजनों ने उनके खिलाफ प्रदर्शन किया था।
साल 2018 में सत्ता हासिल करने के बाद इमरान खान से अपेक्षा की गई थी कि वे देश को कट्टरपंथी ताकतों से उबार कर एक कामयाब देश के रूप में स्थापित करेंगे। लेकिन उनकी नीतियां पाकिस्तान को गर्त में धकेलने वाली साबित हो रही हैं। भारत पर आतंकी हमलों को रोकने में नाकामी के चलते वे पड़ोसी देश से सामान्य रिश्ते बनाने में भी असफल रहे। चीन पर निर्भरता उनके देश के लिए घातक बनती जा रही है। पाकिस्तान में ग्वादर और चीन के समझौते को लेकर कहा जा रहा है कि पाकिस्तान चीन का आर्थिक उपनिवेश बन गया है। चीन ने पाकिस्तान को ऊंचे ब्याज पर कर्ज दिया है। आने वाले वक्त में पाकिस्तान पर चीनी कर्ज का बोझ और बढ़ेगा।
अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी को लेकर पाकिस्तान की दुनियाभर में आलोचना हुई है। अफगानिस्तान के नागरिकों में रैलियां निकाल कर पाकिस्तान विरोधी नारे लगाए है। चीन पाकिस्तान की मदद करके उसे भारत के खिलाफ इस्तेमाल करता रहा है, वहीं सऊदी अरब आर्थिक मदद के बदले पाकिस्तान पर सैन्य और अन्य तरीकों से ईरान विरोध मुखर करने को लेकर दबाव बढ़ा सकता है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 2018 में पाकिस्तान को धोखेबाज और झूठा करार दिया था। उन्होंने कहा था कि पिछले सालों में पाकिस्तान को अरबों डालर की सहायता दी गई और ये मूर्खतापूर्ण फैसला था। उन्होंने अफगानिस्तान के आतंकवादियों को पनाह देने को लेकर पाकिस्तान की कड़ी आलोचना की थी। अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति बाइडेन भी पाकिस्तान के इरादों को लेकर संशय जताते रहे हैं।
इमरान खान को देश की वैश्विक छवि सुधारने और देश को कर्ज से बचाने के लिए पाकिस्तान में आतंकवादी संगठनों को काबू में करना होगा। लेकिन उनमें ऐसी राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाई नहीं देती। एफएटीएफ के प्रतिबंधों से बचने और मुक्ति पाने के लिए पाकिस्तान सरकार ने अठहत्तर संगठनों पर पाबंदी लगाई है। लेकिन इस सूची में शामिल संगठनों के न तो राजनीतिक कार्यालय सील किए गए हैं और न ही चंदा इकट्ठा करने जैसी गतिविधियों को लेकर कोई प्रतिबंध लगाया है।
इमरान खान की अदूरदर्शिता, खराब शासन व्यवस्था और आतंकियों के प्रति लचर नीति देश में राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ावा दे रही है। इससे संवैधानिक व्यवस्थाएं ठप होने और कट्टरपंथी ताकतें मजबूत होने का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। आइएसआइएस, जैश-ए-मोहम्मद, हिजबुल मुजाहिदीन, तालिबान और अलकायदा जैसे वैश्विक आतंकी संगठन पाकिस्तान में पहले ही मजबूत हैं और ये बेकाबू होकर वैश्विक सुरक्षा संकट बढ़ा सकते हैं।
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