आईपीएस आशा गोपाल को जब शिवपुरी जिले की कमान मिली तब ये इलाका डकैतों का गढ़ हुआ करता था। उस समय देशभर में कुल 16 महिला अधिकारियों में से ये एक थीं। किरण बेदी के बाद किसी जिले का स्वतंत्र प्रभार संभालने वाली आशा, दूसरी महिला आईपीएस अधिकारी थीं।
सफर की शुरूआत: आशा गोपाल का जन्म 14 सितंबर 1952 को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में हुआ था। पिता अधिकारी थे, और मां शिक्षाविद् थीं। शुरुआती पढ़ाई के बाद उन्होंने मोतीलाल विज्ञान महाविद्यालय भोपाल से वनस्पति विज्ञान में एमएससी कीं। इसके बाद उन्हें प्रोफेसर की नौकरी भी मिल गई, लेकिन उनका मन तो यूपीएससी क्लियर करके अधिकारी बनने का था। इसलिए उन्होंने अपना पूरा ध्यान सिविल सेवा पर लगाया और 1976 में इसमें कामयाब भी हो गईं।
शिवपुरी में तैनाती: किरण बेदी के बाद आशा दूसरी महिला थीं, जिन्हें स्वतंत्र रूप से एक जिले की कमान मिली थी। इनकी पहली पोस्टिंग ही डकैत प्रभावित इलाके शिवपुरी में हुई। जहां उन्हें कई ईनामी डकैतों का एनकाउंटर कर दिया था। देश में ये पहली बार था जब ऐसे किसी अभियान की नेतृत्व एक महिला अधिकारी कर रहीं थीं। आशा गोपाल का ये सख्त कदम उन्हें रातों-रात सुर्खियों में ले आया था।
डकैतों की सूचना: इंडिया टुडे के अनुसार उस समय में मशहूर डाकू देवी सिंह के गैंग की छुपे होने की जानकारी जब इस महिला अधिकारी को मिली तो लगभग 100 पुलिसकर्मियों के साथ शिवपुरी से 125 किमी पूर्व में राजपुर गांव की ओर निकल पड़ीं। जहां डकैतों के छुपे होने की खबर थी। रात के अंधेरे में पुलिस ने उस गन्ने के खेत को घेर लिया, जिसमें देवी सिंह और उसका गिरोह छिपा हुआ था। पुलिस ने सुबह तक इंतजार किया और फिर डकैतों को सरेंडर करने के लिए कहा। लेकिन डकैतों ने सरेंडर करने की बजाय गोलियां चलानी शुरू कर दी। जिस पर पुलिस की ओर से भी फायरिंग की गई। इस एनकाउंटर में डकैत देवी सिंह सहित चार दस्यू की मौत हो गई थी।
बहादुरी के लिए मिले अवॉर्ड: आशा गोपाल की बहादुरी और डकैत प्रभावित क्षेत्र में सेवा के प्रति प्रतिबद्धता के उन्हें 1984 में वीरता के लिए राष्ट्रपति पुलिस पदक और मेधावी सेवा पदक से सम्मानित किया गया था। उन्होंने 1999 में एक जर्मन पुलिस अधिकारी से शादी की। इसके बाद उनकी पोस्टिंग जहां भी हुई, बदमाश उनके नाम से कांपने लगते थे।
1980 के दशक में मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध डकैत प्रभावित क्षेत्रों में कई कठिन पोस्टिंग को उन्होंने सफलतापूर्वक पूरा किया। उन्होंने 24 वर्षों तक मध्य प्रदेश पुलिस को अपनी सेवा दी। जिसके बाद उन्होंने पुलिस महानिरीक्षक के रूप में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले लीं।
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