सिंगापुर ने टाली भारतीय मूल के व्यक्ति की फांसी, ‘मौत की सजा’ के विरोध में दुनिया, आखिर क्या है मामला? | Singapore, Malaysia,


नागेंद्रन के. धर्मलिगंम को फांसी दिए जाने का विरोध हो रहा है (Nagaenthran K Dharmalingam Death Penalty)

सिंगापुर (Singapore) की एक अदालत ने नशीले पदार्थ की तस्करी के लिए दोषी ठहराये गए भारतीय मूल के मलेशियाई व्यक्ति की फांसी की सजा सोमवार को तब तक के लिए निलंबित कर दी जब तक कि एक अपील पर सुनवाई नहीं हो जाती. व्यक्ति की फांसी रोकने के लिए विश्व भर में मांग की जा रही है. मानसिक रूप से अस्थिर माने जाने वाला एन. के धर्मलिंगम (33) को बुधवार को नशीले पदार्थों की तस्करी के मामले में चांगी जेल में फांसी दी जानी थी. ‘स्टार ऑनलाइन’ वेबसाइट ने बताया कि सोमवार को सिंगापुर के उच्च न्यायालय ने एक ऑनलाइन सुनवाई के दौरान उसकी निर्धारित फांसी पर एक अपील पर सुनवाई होने तक रोक लगा दी.

धर्मलिंगम के वकील एम रवि ने फेसबुक पर पोस्ट किया, ‘उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील पर अदालत में अपील की सुनवाई लंबित रहने तक फांसी पर रोक लगाने का उच्च न्यायालय ने आदेश दिया है.’ अपील पर सुनवायी मंगलवार को वीडियो कांफ्रेंस के जरिए होनी है. यदि अपील खारिज कर दी जाती है, तो उसे निर्धारित समय के अनुसार फांसी दी जा सकती है. इससे पहले, सिंगापुर सरकार (Singapore Government) ने कहा कि हेरोइन तस्करी मामले में दोषी करार दिए जा चुके भारतीय मूल के व्यक्ति को पता था कि वह क्या अपराध कर रहा है.

सिंगापुर में ड्रग्स तस्करी में मिलती है मौत की सजा

मादक पदार्थ की तस्करी के आरोप में 33 वर्षीय नागेंद्रन के. धर्मलिगंम को बुधवार को चांगी जेल में फांसी की सजा दी जानी है. धर्मलिंगम को सिंगापुर और प्रायद्वीपीय मलेशिया के ‘बीच कॉजवे लिंक’ पर वुडलैंड्स नाका पर मादक पदार्थ की तस्करी मामले में गिरफ्तार किया था. उसकी जांघ पर मादक पदार्थ का बंडल बंधा था. व्यक्ति को 2009 में 42.72 ग्राम हेरोइन तस्करी के मामले में 2010 में दोषी करार देते हुए मौत की सजा सुनाई गई थी. मादक पदार्थ दुरुपयोग अधिनियम के तहत यहां 15 ग्राम से ज्यादा तस्करी के मामले में मौत की सजा का प्रावधान है.

सजा माफ करने के लिए चलाया गया हस्ताक्षर अभियान

स्ट्रेट्स टाइम्स की खबर के मुताबिक यह मामला पिछले महीने प्रकाश में आया जब सिंगापुर कारागार सेवा ने धर्मलिंगम की मां को 26 अक्टूबर को पत्र लिखकर उनके बेटे को 10 नवंबर को फांसी की सजा दिए जाने की जानकारी दी. परिवार को 10 नवंबर तक मिलने की अनुमति दी गई है. सोशल मीडिया पर लोगों ने इस पत्र को साझा किया. उसकी मौत की सजा माफ करने के संबंध में 29 अक्टूबर को एक हस्ताक्षर अभियान चलाया गया और पिछले हफ्ते तक इस पर 56,134 से ज्यादा लोगों के हस्ताक्षर हो चुके हैं.

‘द स्ट्रैट्स टाइम्स’ की खबर में गृह मंत्रालय के एक बयान का हवाला देते हुए कहा गया कि उच्च न्यायालय ने व्यक्ति के अपराध करने के दौरान मामले की गंभीरता को समझ पाने की मानसिक क्षमता पर भी विचार किया. इस मामले पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सवाल उठे हैं और मानवाधिकार समूहों और अन्य ने इंटेलेक्चुअल डिसेब्लिटी (व्यक्ति की समझ की क्षमता) के आधार पर फांसी की सजा नहीं दिए जाने की मांग की थी.

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