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भारत, सिलिकॉन सेमींकडक्टर चिप्स बनाने का लक्ष्य लेकर चल रहा है। मार्केट लीडर ताइवान की मदद से सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन प्लांट स्थापित करने के प्रयास तेज कर दिए गए हैं। इसके लिए भारत सरकार 7.5 अरब डॉलर से अधिक का निवेश कर रही है।
इस पहल में टाटा समूह तमिलनाडु, तेलंगाना और कर्नाटक के साथ बातचीत कर रहा है। सेमींकडक्टर विनिर्माण के सेट अप के लिए टाटा समूह 30 करोड़ डॉलर निवेश करने का इच्छुक है।
दुनिया भर में सिलिकॉन फैब और चिप बनाने वाली कंपनियों में कई भारतीय तकनीकी विशेषज्ञ काम कर रहे हैं। इसी कड़ी में आंध्र प्रदेश के आई आई टी के पूर्व छात्र, इस उद्योग को अपने राज्य में लाने की पाँच वर्ष पुरानी पहल पर प्रयास कर रहे हैं। सिलिकॉन बनाने के लिए लगने वाले पानी और रेत जैसे कच्चे माल की आंध्रप्रदेश में प्रचुरता है। साथ ही सड़क, रेल, बंदरगाह और हवाई अड्डे से कनेक्टिविटी के भरपूर साधनों को देखते हुए चिप्स के डिजाइन और निर्माण को यहाँ बढ़ावा देना उपयुक्त भी लगता है।
सरकार और प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों का मानना है कि वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए केवल चिप बनाना ही पर्याप्त नहीं है। इस हेतु निम्न कुछ अन्य पहलुओं पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए –
- चिप विनिर्माण में डिजाइनिंग बहुत ही महत्वपूर्ण है। यदि बौद्धिक संपदा विदेशी कंपनी के पास है, तो केवल मूल सामग्री का निर्माण करने से उद्देश्य की पूर्ति नहीं होगी।
- सिस्टम ऑन ए चिप या एसओसी को बढ़ावा देने के लिए पारिस्थितिकी तंत्र पर अधिक ध्यान देना होगा। इस हेतु सरकार को चाहिए कि वह चिप बनाने वाली बड़ी कंपनियों को आपस में जोड़कर भारत की क्षमता में वृद्धि करे। आपूर्ति श्रृंखला को बेहतर बनाए।
इस पहल की राह आसान नहीं है। भारत को उत्तम चिप बनाने और डिजाइनिंग उद्योग में पांव पसारने के लिए कई कारकों को एक साथ लाने की आवश्यकता है। साथ ही, बाजार में आने वाली फर्मों को सरकार की सब्सिडी के बगैर भी स्वयं को बनाए रखने में सक्षम होना चाहिए। इन सबके साथ हम चिप के क्षेत्र में वैश्विक बाजार का हिस्सा बनने की आशा कर सकते हैं।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित अप्पानी रिडेम के लेख पर आधारित। 13 दिसम्बर, 2021
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