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बैंकरों का डर को दूर करने के लिए बनाया गया बैड बैंक, अब स्वयं ही समस्याओं के जाल में घिर गया है।
कुछ मुख्य बिंदु –
- समस्या का कारण जुडवां कंपनी का सेटअप है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के साथ एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड या आम तौर पर जिसे एआरसी कहा जाता है, का मेल करके केंद्र सरकार ने बैड बैंक की रचना की। इसके साथ ही इंडिया डेट रिसॉल्युशन कंपनी लिमिटेड को भागीदार बनाया गया, जिसका काम स्ट्रेस्ड एसेट या तनावग्रस्त सम्पत्तियों को बाजार में बेचना था।
- ऐसा माना जाता है कि बैड बैंक की इस रचना में आरबीआई के साथ पर्याप्त परामर्श नहीं किया गया था। अब सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक चाहते हैं कि बैड बैंक में संलग्न निजी कंपनी को आरबीआई विनियमित करे, जिससे ऋण समाधान मामलों में सीबीआई जैसी जांच एजेंसियां सवाल न उठाएं। लेकिन कानून एक निजी कंपनी के विनियमन के लिए आरबीआई को अनुमति नहीं देता है।
- आरबीआई चाहता है कि उसने जिस एआरसी को बैड बैंक के लिए लाइसेंस दिया था, वह एन पी ए या गैर निष्पादित संपत्ति के अधिग्रहण की पूरी जिम्मेदारी ले।
इस पूरी समस्या से निपटने के लिए वित्त मंत्रालय को प्रमुख हितधारकों के साथ चर्चा करनी चाहिए। आरबीआई और बैंको को स्वीकार्य हो, ऐसा बैड बैंक बनाया जाना चाहिए।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 20 जनवरी, 2022
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