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पिछले दो वर्षों में, जीनोम सीक्वेसिंग, निदान टीके, या एंटीवायरल में जैव प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस क्षेत्र ने 16% से अधिक की अभूतपूर्व चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर देखी है। 2022 के अंत तक इसके 90 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है।
इस क्षेत्र की महत्ता से जुड़े कुछ बिंदु –
- कोविड महामारी से निपटने में भारत का आधार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी रहा है। भारतीय वैज्ञानिकों ने ऐसे उपकरण विकसित कर लिए हैं कि अब भारत, वैश्विक जरूरतों की पूर्ति कर सकता है।
- आज भारत के पास अन्य बीमारियों के भी तीव्र, संवेदनशील और विशिष्ट निदान विकसित करने के लिए नई अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग करने की आवश्यक क्षमता है।
- भारत में एक ऐसे मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कर लिया गया है, जो नैदानिक नमूनों, सत्यापन पैनल, निर्माण क्षमता और बाजार तक पहुंच प्रदान करता है।
- घरेलू कच्चे माल के विकास और आपूर्ति के लिए अच्छी कनेक्टिविटी तैयार कर ली गई है, जिससे बड़े पैमाने पर विनिर्माण हो सके।
- इस तंत्र का उपयोग अब आगे के विकासात्मक अनुसंधान के लिए किया जा सकता है।
कोविड महामारी के कई दौर के बाद भी हमें अन्य बीमारियों से लड़ने को तैयार रहना होगा। वायरस के बदलते स्वरूप के साथ उत्पन्न होने वाली मानव स्वास्थ की चुनौतियों का समाधान करने हेतु एक सफल वैज्ञानिक पारिस्थितिकी तंत्र को विकसित करने के लिए क्षमता, अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी और सहयोग आवश्यक है।
राष्ट्रीय बायोफार्मा मिशन ने सभी बायोफार्मा उत्पादों के लिए, उत्पाद विकास मूल्य श्रृंखला में साझा बुनियादी ढांचे के एक अत्याधुनिक नेटवर्क का निर्माण किया है। इस ढांचे में नवाचार का अद्वितीय तंत्र भी शामिल है। उम्मीद की जा सकती है कि अन्य स्वास्थ संबंधी प्राथमिकताओं के लिए विज्ञान-आधारित समाधानों की पहल की जा सकेगी।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित रेणु स्वरूप के लेख पर आधारित। 26 फरवरी, 2022
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