महिला कार्यबल की स्थिति का विश्लेषण

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  • महिलाएं और लड़कियां भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
  • भारत की महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर ब्रिक्स देशों में सबसे कम है। यह श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे कुछ दक्षिण एशियाई देशों की तुलना में भी कम है।
  • 2005 में जहां कार्यबल या रोजगार की खोज में जुटी महिलाओं की भागीदारी 32% थी, वहीं 2019 में यह घटकर 21% रह गई है।
  • आर्थिक और सामाजिक कारणों से, महिलाओं को रोजगार की चुनौती बनी रहती है।
  • इस मामले में प्रगति पथ पर बढ़ने के लिए भारत को चीन, सिंगापुर, ताईवान और दक्षिण कोरिया से सबक लेना चाहिए।

महिलाओं की शक्ति के सदुपयोग की संभावना कहाँ है ?

  • विशेषरूप से प्राथमिक शिक्षा और प्रारंभिक बाल्यावस्था की देखभाल में।
  • विनिर्माण, निर्माण की तुलना में अन्य सेवा क्षेत्रों जैसे स्वास्थ और व्यक्तिगत देखभाल दूसरे शब्दों में कहें, तो उपकरण, तकनीक और मशीन प्रधान क्षेत्रों के बजाय श्रम प्रधान क्षेत्र में रोजगार के अवसर ज्यादा हैं।
  • एक अध्ययन के अनुसार केयर इकॉनॉमी में बढ़ते निवेश के साथ, 2030 तक भारत में कुल 6.9 करोड़ रोजगार उत्पन्न करने की क्षमता है।

नीतियां और उपाय –

  • महिलाओं और लड़कियों के लिए उच्च शिक्षा सुगम हो।
  • कौशल विकास केद्रों तक उनकी पहुंच बने।
  • परिवहन एवं हॉस्टल सुविधा बढ़ायी जानी चाहिए।
  • नए और उभरते क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों के लिए महिलाओं को क्रेडिट सुविधाओं और रिवॉल्विंग फंड आदि के माध्यम से रोजगार योग्य बनाना महत्वपूर्ण होगा।
  • गिग, प्लेटफॉर्म और देखभाल क्षेत्र के साथ-साथ उत्पादन से जुड़ी योजना के तहत आने वाले क्षेत्रों में प्रशिक्षण को प्रोत्साहित करने की जरूरत है।
  • सामाजिक मानदंड़ों, घरेलू जिम्मेदारियों या सुरक्षा के चलते ऑनलाइन प्रशिक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए।
  • इन सबके लिए अंतर-मंत्रालयी समन्वय आवश्यक है।
  • सरकारों, कौशल प्रशिक्षण भागीदारों, निजीफर्मों, कॉरपोरेट्स और उद्योग संघों के साथ-साथ नागरिक समाज संगठनों को भी एक साथ आने की जरूरत है।

लैंगिक समानता के साथ महिलाओं की श्रम भागीदारी बढ़ाकर, सामाजिक कल्याण और आर्थिक विकास के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित के. राजेश्वर राव एवं साक्षी खुराना के लेख पर आधारित। 8 मार्च, 2022

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