भारत के लिए निर्णायक सुअवसर है

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यूक्रेन में संघर्ष और हिंसा के परिणामस्वरूप मानव जीवन की हुई हानि अत्यंत खेदजनक है। महात्मा गांधी के राष्ट्र के रूप में, भारत को आंतरिक और वैश्विक स्तर पर शांति और अहिंसा का ही अग्रदूत होना चाहिए।

सन् 1989 में बर्लिन की दीवार के गिरने के बाद से खुली अर्थव्यवस्थाओं का एक स्वरूप कई देशों की शासन व्यवस्था के रूप में व्यवस्थित हुआ। इसने दुनिया भर में लोगों, वस्तुओं, सेवाओं और पूंजी की मुक्त आवाजाही का रास्ता बनाया है। इस अवधि में वैश्विक व्यापार और प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद दोगुना हो गया। यह संपूर्ण युग शांति और समृद्धि का पर्याय बन गया, जिसमें पूरा विश्व एक गांव के रूप में सिमट कर पास आ गया था।

वैश्विक ताना बाना और भारतीय स्थिति –

पिछले तीन दशकों में व्यापार में तीन गुना प्रगति हुई है। भारत को भी इस दौरान बहुत लाभ हुआ है। अन्य देशों के साथ व्यापार हमेशा ही भारत के आर्थिक भविष्य का एक अभिन्न अंग होना चाहिए। अलगाववाद और संरक्षणवाद भारत के लिए हानिकारक होगा।

रूस-यूक्रेन संघर्ष, एक वैश्विक भू-आर्थिक संघर्ष है, जो दो प्रमुख शक्ति गुटों के शीत युद्ध के युग में वापस आने की धमकी देता है। जिन राष्ट्रों ने इस रूसी आक्रमण की निंदा नहीं की है, उनमें दुनिया की आधी से अधिक आबादी, लेकिन विश्व अर्थव्यवस्था का एक-चौथाई हिस्सा हैं।

दूसरी ओर ऐसे राष्ट्र हैं, जो अर्थव्यवस्था का तीन-चौथाई हिस्सा समेटे हैं, और वे इस आक्रमण की निंदा कर रहे हैं। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि पहली श्रेणी वाले राष्ट्रों में रूस-चीन ब्लॉक हैं, जो दुनिया की बढ़ती खपत के लिए बड़े पैमाने पर उत्पादन करते हैं। जबकि बाद वाला ब्लॉक, जिसमें पश्चिमी राष्ट्र हैं, आज के बड़े उपभोक्ता हैं। इन दोनों ब्लॉकों को विभाजित करने वाला कोई भी पक्ष, संतुलन में बड़ी उथल-पुथल का कारण बनेगा।

भारत के लिए अवसर –

भारत का व्यापार, इन दोनों शक्ति-ब्लॉकों और मुक्त व्यापार की वर्तमान वैश्विक आर्थिक संरचनाओं, रिजर्व करेंसी और लेनदेन प्रणालियों पर निर्भर है। अब, जबकि पश्चिमी ब्लॉक रूस-चीन पर अपनी निर्भरता कम करना चाहता है, यह भारत के लिए व्यापार के विस्तार का रास्ता खोलता है। पश्चिमी देशों ने ‘मुक्त लेकिन सैद्धांतिक व्यापार’ के एक नए प्रतिमान को अपनाने की इच्छा व्यक्त की है। यह नैतिकता और धन दोनों को महत्व देता है। इस समय भारत के लिए विश्व का आर्थिक पावरहाउस बनने का अवसर है। इस हेतु भारत को इन बाजारों में मुक्त प्रवेश, एक स्वीकृत वैश्विक मुद्रा और बाधारहित व्यापार समझौतों की आवश्यकता है।

भारत को इस नई उभरती विश्व व्यवस्था के लिए गुट-निरपेक्ष सिद्धांत पर डटे रहने के साथ-साथ एक बाधारहित भू-आर्थिक नीति की भी आवश्यकता है, जो वर्तमान वैश्विक आर्थिक संतुलन को बनाए रखने का प्रयास करे।

भारत की बढ़ती मुद्रास्फीति, कच्चे तेल की अस्थिर कीमतें, वैश्विक अनिश्चितता, कमजोर निजी निवेश से बिगड़ती वित्तीय स्थिति के साथ, दुनिया में व्यापार का विस्तार, भारत की अर्थव्यवस्था को उबारने और हमारे युवाओं और महिलाओं के लिए बड़ी संख्या में रोजगार पैदा करने का सुअवसर देता है।

सामाजिक समरसता जरूरी है –

जिस प्रकार भू-आर्थिक संतुलन को बनाए रखना भारत के सर्वोत्तम हित में है, उसी प्रकार भारत के लिए अपने घरेलू सामाजिक संतुलन को बनाए रखना भी अनिवार्य है। बड़े पैमाने पर उत्पादक राष्ट्र बनने के लिए भारत को सभी धर्मों और जातियों के करोड़ों लोगों के साथ मिलकर काम करने के लिए लाखों कारखानों की आवश्यकता होगी।

सामाजिक समरसता, आर्थिक समृद्धि की इमारत है। नागरिकों के बीच आपसी अविश्वास, घृणा और क्रोध को हवा देकर सामाजिक वैमनस्य को बढ़ाने से विनाश ही होगा।

भारत अपनी विदेश नीति, आर्थिक नीति और भू-राजनीतिक रणनीति का पुनर्मूल्यांकंन करे, और वैश्विक नेतृत्व की कमान संभालने के लिए वातावरण तैयार करे। इसी में भारत का कल्याण है।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित मनमोहन सिंह के लेख पर आधारित। 22 अप्रैल, 2022

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