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भारत और अनेक विकसित देशों के अग्रणी विश्वविद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और अनुसंधान की मांग लगातार बढ़ रही है। प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों की बढ़ती ट्यूशन फीस, मेधावी युवाओं को आगे बढ़ने से रोकती है। इसी के चलते हाल ही में न्यूयार्क यूनिवर्सिटी के एक स्कूल ने अपने एमडी कार्यक्रम में प्रवेश लेने वाले सभी छात्रों की ट्यूशन फीस का भुगतान स्वयं करने की घोषणा की है। केवल अमेरिका ही नहीं, बल्कि डेनमार्क, फिनलैण्ड जैसे कई नॉर्डिक देश हैं, जो अपने युवा नागरिकों को निःशुल्क उच्च शिक्षा प्रदान करते हैं।
- उच्च शिक्षा की फीस का बोझ कम करने के लिए अगर युवा शिक्षा ऋण लेते है, तो यह विकास और लोक कल्याण की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डालता है।
- ऊँची ट्यूशन फीस से चिकित्सा जैसे पेशे का पूरी तरह से व्यवसायीकरण होता जा रहा है। एक तो इस पढाई के लिए भारी ऋण लेने वाले छात्र उच्च भुगतान वाली स्पेशियालिटी लेना चाहते हैं। दूसरे, वे अपने पेशे से शिक्षा में लगाए गए धन की पूर्ति करना चाहते हैं। ऐसे में, शिक्षा का मूलभूत उद्देश्य तो खत्म ही हो जाता है।
भारत में उच्च शिक्षा के लिए परोपकार और सामुदायिक समर्थन को सक्रिय किया जाना चाहिए। कॉरपोरेटस, पूर्व विद्यार्थी और जन भागीदारी से उच्च शिक्षा के लिए एक मजबूत समर्थन तैयार किया जा सकता है, जो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को निःशुल्क बना सकता है। सरकार को चाहिए कि वह उच्च शिक्षा और अनुसंधान के लिए दिए जाने वाले दान को कर मुक्त घोषित कर दे। इससे शिक्षा को सेवा और उत्कृष्टता प्राप्त करने का साधन रखा जा सकता है।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित राजेश मेहता और प्रीतम बी. शर्मा के लेख पर आधारित। 4 जून, 2022
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