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भारत की जेलों में साढ़े तीन लाख विचाराधीन कैदी हैं।
- प्रिजन स्टैटिस्टिक्स इंडिया 2020 के अनुसार हर चार में से तीन कैदी विचाराधीन हैं।
- यह आपराधिक न्याय प्रणाली में सर्वोच्च आदेश की अक्षमता और असमानता की ओर इशारा करता है। एक बड़े और पुराने लोकतंत्र में इसका कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
- भारत सरकार समस्या को स्वीकार करती है। इसी के मद्देनजर कानून मंत्री ने राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरणों को विचाराधीन कैदियों पर कार्रवाई करने और 15 अगस्त तक पात्र लोगों को रिहा करने के लिए कहा है।
- दुर्भाग्य यह है कि 2020 में दोषियों का प्रतिशत कम हो गया था, जबकि विचाराधीन कैदियों के प्रतिशत में 12% की वृद्धि हुई थी। फिलहाल जिला जेलों में इन कैदियों का प्रतिशत 136 हो गया है।
- पीएसआई 2020 की रिपोर्ट के अनुसार दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 436ए के तहत जल्द रिहाई के लिए पात्र कैदियों में से केवल एक तिहाई को रिहा किया गया था। अतः कानून मंत्री की अपील मायने रखती है।
दरअसल, हमारे कानूनी क्षेत्र को एक व्यवस्थागत परिवर्तन की जरूरत है। इसके साथ ही गरीबों के लिए निःशुल्क या सस्ती कानूनी सेवाओं तक पहुंच, कार्यवाही की सुनिश्चितता, स्थानीय भाषा में होने चाहिए। कैदियों को उनके अधिकारों के बारे में सूचित करने वाले कानूनी सहायता क्लीनिक जरूरी हैं। कुल मिलाकर हमें समानता और न्यायपूर्ण दक्ष कानूनी प्रणाली की आवश्यता है। इसे प्राप्त करने के लिए एक लंबा रास्ता तय करना है।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 19 जुलाई, 2022
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