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हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने एक अत्यंत प्रगतिशील और मानवीय निर्णय लिया है। न्यायालय ने माना है कि ‘असामान्य’ पारिवारिक इकाइयां परंपरा के रूप में ‘वास्तविक’ हैं, और कानून के तहत समान सुरक्षा की पात्र हैं। यह निर्णय एक कामकाजी महिला को मातृत्व अवकाश के वैधानिक अधिकार से वंचित करने के पक्ष में सुनाया गया है। चूँकि इस महिला ने अपने पति की पहली शादी के बच्चों की देखभाल के लिए छुट्टी ले ली थीं, इसलिए इसे मातृत्व अवकाश नहीं दिया जा रहा था। इसके साथ ही, न्यायालय ने एक एकल अपरिवर्तनीय इकाई के परिवार के दायरे को व्यापक कर दिया है। ऐसा करते हुए न्यायालय ने समलैंगिक के साथ-साथ अन्य अविवाहित जोड़ों को पारिवारिक इकाइयों के रूप में कानूनी मान्यता दे दी है।
यह 2018 में अपैक्स कोर्ट के निर्णय की दिशा में ही आगे का एक कदम है, जिसमें कार्यकर्ताओं और सिविल यूनियनों की मांग को देखते हुए एलजीबीटी विवाहों और लिव-इन संबंधों को मान्यता देने की बात कही गई थी।
असामान्य पारिवारिक इकाइयों को न्यायालय द्वारा मान्यता देने से गोद लेने का अधिकार और विरासत के अधिकारों को विस्तार मिल जाएगा।
इन सभी मुद्दों से संबंधित कानूनों को अभी संबोधित किया जाना बाकी है। कानून में और अधिक स्पष्टीकरण की आवश्यकता हो सकती है।
न्यायालय का यह निर्णय यह पहचानने की दिशा में एक बड़ा कदम है कि सभी पारिवारिक संरचनाएं एक जैसी नहीं होती हैं। यह भी कि परिवार स्थिर या अपरिवर्तनीय संरचनाएं नहीं होते हैं। यद्यपि अभी इस प्रकार की स्वीकृति में समय लगेगा, लेकिन निर्णय सामाजिक रूप से विशिष्ट नहीं होने के कारण बिना किसी भेदभाव के सभी परिवारों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए कानून में समान अवसर प्रदान करता है।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 30 अगस्त, 2022
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