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हाल ही में भारत सरकार ने सोशल मीडिया मंचों को कंटेंट मॉडरेशन यानि भ्रामक सामग्री या फेक न्यूज के लिए जवाबदेह बनाने हेतु संशोधित नियम प्रस्तुत किए हैं। विशेष बात यह है कि पहले के नियमों में उपयोगकर्ताओं को दिशानिर्देशों का पालन करने की सलाह अधिक दी जाती थी। लेकिन अब सोशल मीडिया मंचों को गलत या भ्रामक सूचनाओं के प्रसारण को रोकने के लिए “उचित प्रयास” करने के लिए बाध्य किया गया है।
इन संशोधनों में किए गए दो अन्य महत्वपूर्ण परिवर्तन –
- मंचों को नियमों की व्याख्या अधिक भारतीय भाषाओं में करने के निर्देश दिए गया हैं। भारत की भाषाई विविधता को देखते हुए यह जरूरी था।
- ये नियम भारत सरकार को एक नया निकाय बनाने की शक्ति प्रदान करते हैं। इसके साथ ही सरकार अपनी ओर से शिकायत अपील समिति बना सकती है।
सोशल मीडिया का प्रभाव केवल भारत ही नहीं, बल्कि विश्व के तमाम देशों में फैला हुआ है। ब्राजील में चल रहे राष्ट्रपति चुनावों में अनियंत्रित सोशल मीडिया के दखल का खतरा मंडरा रहा था। इन मंचों पर बल्क ट्रांसमिशन पर प्रतिबंध लगाकर इसका मुकाबला करने के प्रयास पूरी तरह से अपर्याप्त रहे हैं। इसे देखते हुए अप्रैल में यूरोपीय संसद और यूरोपियन यूनियन ने डिजिटल सर्विस एक्ट पर एक समझौता किया है। इस कानून में उपयोगकर्ताओं को समस्याग्रस्त सामग्री को फ्लैग करने की अनुमति दे दी गई है। साथ ही मंचों को उपयोगकर्ताओं का साथ देने के लिए बाध्य कर दिया गया है।
सोशल मीडिया मंचों के दृष्टिकोण को देखते हुए भारत सरकार ने सही कदम उठाया है। इससे नियामक संरचना की कमियों को दूर किया जा सकेगा। उम्मीद की जा सकती है कि नौकरशाही इन नियमों को जल्द लागू करवाने का प्रयास करेगी।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 31 अक्टूबर, 2022
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