भारत में बढ़ते मध्य-वर्ग से जुड़े कुछ तथ्य

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  • भारत में आर्थिक विकास में आए उछाल के साथ ही मध्य-वर्ग के आकार में तेजी से वृद्धि देखी जा रही है। इस संबंध में प्राइस फाउंडेशन ने सर्वेक्षण करके निष्कर्ष निकाला है कि भारतीय समाज में मध्यम वर्ग का आकार 30% से अधिक हो गया है। ऐसा निष्कर्ष निकालने के लिए प्राइस ने 2020-21 में 5 लाख- 30 लाख की वार्षिक आय सीमा वाले परिवारों को वर्गीकृत किया है। यह अर्जित आय के 50%, व्यय 48% और बचत के 56% का प्रतिनिधित्व करता है।
  • निष्कर्ष में यह भी कहा गया है कि आर्थिक उदारीकरण के तीन दशकों के बाद भी मध्य-वर्ग का केवल 30% होना निराशाजनक है। इसका संकेत सही समय पर सही आर्थिक नीतियों को चुनने में कमी की ओर है।
  • आज भी 67% परिवार कुल बचत में मात्र 1% का योगदान कर रहे हैं। यह बुरे समय में परिवार की आर्थिक कमजोरी की आशंका को बताता है।

यदि वैश्विक रूप से देखें, तो मध्य-वर्ग का विस्तार किसी देश के राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से शक्ति संपन्न होने का संकेत माना जाता है। समाज विज्ञानी मानते हैं कि बढ़ती हुई अर्थव्यवस्थाओं में मध्य-वर्ग के विस्तार का संबंध नागरिक सक्रियता से लगाया जा सकता है। पश्चिमी देशों में इनका झुकाव राजनीतिक संलिप्तता में रहता है। नागरिक सक्रियता को परिवर्तन का शक्तिशाली उत्प्रेरक माना जाता है। भारत में मध्यवर्गीय सक्रियता के उदाहरण, महिलाओं के विरूद्ध हिंसा से निपटने के लिए बनाए गए कानूनों में मिलते हैं।

मध्य वर्ग के विस्तार का सभी समाजों पर एक स्थायी प्रभाव पड़ता है। प्राइस फाउंडेशन का अनुमान है कि यदि भारत आवश्यक राजनीतिक और आर्थिक सुधारों पर अमल करता है, तो 2047 तक मध्य वर्ग के 63% तक हो जाने की संभावना है। अगर यह हो जाता है, तो यह समाज के लिए बहुत परिवर्तनकारी होगा।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 3 नवंबर, 2022

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