मनरेगा को अधिक प्रभावी बनाएं

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महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, संक्षेप में जिसे ‘मनरेगा’ कहा जाता है, 15 वर्षों से चल रहा है। इसमें पंजीकृत 15.51 करोड़ श्रमिको के साथ यह सामाजिक सुरक्षा गारंटी की एक प्रभावी योजना रही है। यदि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इसका आकलन करें, तो यह गरीबी उन्मूलन में विफल रही है, और अपेक्षाकृत समृद्ध राज्यों में संपत्ति इकट्ठा करने का एक माध्यम बन गई है। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इस कार्यक्रम की समीक्षा करते हुए इसकी क्षमता बढ़ाने पर बल दिया है। इससे संबद्ध समिति की कार्ययोजना से जुड़े बिंदु –

मनरेगा नौकरियों, व्यय के रूझान आदि का राज्यवार अंतर को समझना।

इस योजना से जुड़े प्रशासनिक मामलों पर ध्यान देना।

समीक्षा में योजना कार्यक्रम के इच्छित लक्ष्य को अधिक स्पष्ट करना।

यूं तो इसे ‘गरीबी उन्मूलन’ कार्यक्रम के रूप में अस्थायी रूप से डिजाइन किया गया है, जिससे कोई भी परिवार गरीबी की बेहाली में न जा पाए। इसका उद्देश्य निर्धन परिवारों को स्थायी रूप से गरीबी से मुक्त करना नहीं है।

महामारी के दौरान मनरेगा अपने लक्ष्य में कुछ हद तक सफल रहा है। जिन्हें काम मिल सका, उनके आर्थिक नुकसान की कुछ भरपाई हो सकी। परंतु लगभग 39% ऐसे भी रहे, जिन्हें काम मिल ही नहीं सका।

समीक्षा समिति को चाहिए कि योजना में आई हुई दरारों को भरकर इस योजना की दक्षता को बढ़ाएं। इससे पहले इसके विस्तार का प्रयत्न न करें। साथ ही इसमें ‘कार्य’ की परिभाषा को स्पष्ट करें। इस योजना के माध्यम से जिन राज्यों में संपत्ति बढ़ाई जा सकी है, वहाँ इसे रोजगार का स्थायी साधन बना दिया जाना चाहिए। इस प्रकार से मनरेगा को अगर और अधिक प्रभावी बनाया जा सके, तो यह प्रशंसनीय होगा।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 30 नवंबर, 2022

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