सूचना आयोग पर मंडराता खतरा

To Download Click Here.

भारत में सरकारी कामकाज एवं अन्य क्षेत्रों की सीमित लेकिन पारदर्शी जानकारी उपलब्ध कराने में केन्द्रीय सूचना आयोग महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। किसी सूचना का खुलासा करने या न करने का निर्णय लेना ही इस आयोग का मुख्य काम है। कुछ समय से ऐसा प्रतीत होता है कि आयोग अपने इस काम को करने में मुश्किल का सामना कर रहा है।

कुछ बिंदुओं में इसे समझा जाना चाहिए –

  • चार वर्ष पहले तक आयोग एक कार्यरत संस्था थी। सार्वजनिक महत्व के कई मामलों में इसने पारदर्शिता का निर्णय लेते हुए सूचनाएं देने का आदेश दिया था। यहाँ तक कि इसने राजनैतिक दलों को सूचना अधिकार अधिनियम के अंतर्गत रखने की एक तरह से खुलेआम घोषणा की थी। प्रधानमंत्री की शैक्षणिक योग्यता से लेकर आरबीआई के भारतीय लोन डिफाल्टरों की सूची को भी साझा किया था।
  • हाल ही में आयोग का रवैया बिल्कुल बदल गया है। यहाँ आए हुए मामलों की सुनवाई में ही दो-दो साल का समय लग रहा है। बहुत से मामलों में आयोग मामलों को संबद्ध मंत्रालय के पास भेज देता है। इन मंत्रालयों से राष्ट्र हित में सूचना को गोपनीय रखे जाने का घिसा-पिटा आदेश आ जाता है।
  • अधिक चिंता की बात यह है कि आयोग ने मंत्रालयों या सार्वजनिक प्राधिकरणों के गोपनीयता के आदेश को दी जाने वाली चुनौती को ही स्वीकार करने से इंकार करना शुरू कर दिया है। इसका अर्थ है कि वह मामलों पर निर्णय लेने के अपने कर्तव्य को ही पूरा नहीं कर रहा है। वर्तमान में आयोग, मामलों से संबद्ध मंत्रालयों को ही सूचना देने या न देने के निर्णय का अधिकार देकर अधिनियम का उल्लंघन कर रहा है।
  • सूचना आयोग के काम में आई इस ढील का एक कारण यह भी हो सकता है कि 2019 में किए गए अधिनियम में संशोधन के बाद केंद्र ने इसके नियमों में परिवर्तन करके आयोग और उसके आयुक्तों की स्वतंत्रता और कार्यकाल के निर्णय का अधिकार मनमाने तरीके से ले लिया है। इससे पूर्व सूचना आयुक्तों का कार्यकाल पाँच वर्ष के लिए निर्धारित हुआ करता था।

अति तब हुई, जब आयोग ने इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन और फोन टैपिंग जैसे सामान्य मामलों में भी सूचना देने के निर्णय को तीन महीने से भी अधिक समय तक टाले रखा है। जरूरत है कि आयोग की इस प्रकार की गैर-जवाबदेही का पुरजोर विरोध किया जाए।

भारत की पारदर्शिता की रक्षा के लिए स्थापित संस्था स्वयं खतरे में आ गई है। इस व्यवस्था को बनाए रखने के लिए निष्ठापूर्ण आयुक्तों की नियुक्ति के साथ-साथ उनकी स्वतंत्रता बनाए रखने की दिशा में कदम उठाया जाना चाहिए।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित सौरव दास के लेख पर आधारित। 24 नवंबर 2022

The post सूचना आयोग पर मंडराता खतरा appeared first on AFEIAS.


Post a Comment

और नया पुराने