इन्वार्ड रेमीटेन्स से अर्थव्यवस्था को कितनी मजबूती मिलेगी

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विश्व बैंक की माइग्रेशन एण्ड डेवलपमेंट की संक्षिप्त रिपोर्ट बताती है कि वैश्विक विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भारत के प्रवासी कामगार विदेशों से 100 अरब डॉलर तक भेजने की क्षमता में हैं। यह अर्थव्यवस्था के लिए शुभ संकेत है।

इससे संबंधित कुछ बिंदु –

  • व्यापार घाटे के लिए इन्वार्ड रेमीटेन्स उपयोगी होता है। वर्तमान में यह सकल घरेलू उत्पाद का 3% है। अनुमानित रेमीटेन्स 12% है। इससे रेमीटेन्स प्राप्तकर्ता देशों में भारत की स्थिति शीर्ष पर बनी रह सकती है।
  • भारत को मिलने वाले अनुमानित रेमीटेन्स का कारण अमेरिका और ओईसीडी या ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकॉनॉमिक कॉपरेशन एण्ड डेवलपमेन्ट देशों में वेतन वृद्धि बताया जा रहा है।
  • रुपये की कमजोरी के चलते भी विकास देखने को मिल रहा है।
  • आरबीआई के पांचवे सर्वेक्षण से पता चलता है कि 2020-21 में खाड़ी देशों के श्रम बाजार में नियमों और वर्क परमिट के नवीनीकरण शुल्क में बढ़ोत्तरी की गई है। इससे वहाँ के रेमीटेंन्स में कमी आई है।
  • अमेरिका, ब्रिटेन और सिंगापुर के प्रवासी भारतीय इसलिए भी ज्यादा पैसा भेज रहे हैं, क्योंकि मनी, ट्रांसफर के डिजीटलाइलेशन के कारण प्रेषण की औसत लागत में कमी आई है।

वैश्विक अर्थव्यवस्था अस्थिर है। बढ़ती मंदी के साथ चालू खाते का घाटा बढ़ने की आशंका बनी हुई है। आई टी कंपनियों में बढ़ते खिंचाव से भारत के सॉफ्टवेयर क्षेत्र पर भी प्रभाव पड़ने की पूरी संभावना है। अतः बढ़ते व्यापार घाटे को सॉफ्टवेयर निर्यात या इन्वार्ड रेमीटेन्स से नहीं पाटा जा सकेगा। इसलिए भारत को रेमीटेन्स में बढ़ोत्तरी के लिए विकसित देशों के साथ वर्कर वीजा पर तेजी से काम करना चाहिए।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 2 दिसम्बर, 2022

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