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21वीं शती के पहले दो दशकों के दौरान गूगल, अमेज़ान, मेटा, एप्पल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियाँ नवोन्मेष और मूल्य सृजन में सबसे आगे रही हैं। डिजिटल विज्ञापन, क्लाउड इंफ्रा, कॉमर्स मैसेजिंग आदि में ये कंपनियां चीनी कंपनियों के साथ दबदबा बनाए हुए थीं। इसके विपरीत, भारत ने डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (डीपीआई) को अपनाया। इसने भारत को निजी क्षेत्र के नवाचार और प्रतिस्पर्धा में एक छलांग लगाने का मौका दिया है।
ये सार्वजनिक डिजिटल प्लेटफार्म ओपन सोर्स हैं। इनके पास ओपन एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस हैं। साथ ही इंटरोऑपरेबिलिटी (कंप्यूटर सिस्टम और सॉफ्टवेयर एक्सचेंज के साथ सूचनाओं के उपयोग की व्यवस्था) है। ये कम लागत और समावेशी प्लेटफार्म हैं, जो सहमति आधारित डेटा साझाकरण प्रोटोकॉल के मूल सिद्धांत पर आधारित हैं। भारत के इस प्लेटफार्म में शामिल हैं –
- जेएएम ट्रिनिटी, जो आधार मोबाइल और बैंक खातों को जोड़ती है।
- डिजिटल भंडारण और दस्तावेजों के लिए डिजिलॉकर।
- अनेक भुगतानों के लिए एक समाधान के रूप में भारत बिल पे।
- यूपीआईए आधार एनेबल्ड पेमेंट सिस्टम (एईपीएस) और इमिडियेट पेमेंट सर्विस।
- टीकाकरण के लिए कोविन।
प्राप्त लाभ –
- इनके माध्यम से सरकार की सभी योजनाओं में डिजिटलीकरण और तकनीक को शामिल किया जा सका है।
- डीपीआई के कारण भारत ने 10 साल में जो उपलब्धियां हासिल की हैं, उन्हें प्राप्त करने में 50 वर्ष लग जाते।
- इन सभी प्लेटफार्मों को खुलेपन, इक्विटी, समावेशिता, निष्पक्षता, पारदर्शिता और विश्वास के सिद्धांतों पर वैकल्पिक मॉडल बनाकर विकसित किया गया है। भविष्य में, ये ही सिद्धांत भारत को अन्य देशों से आगे ले जाएंगे। उदाहरण के लिए यूपीआई को ही लें। इंटरोऑपरेबिलिटी पर चलने वाले इस मंच से 300 बैंक जुड़े हुए हैं।
पूरी दुनिया में लगभग 4 अरब लोग ऐसे हैं, जिनकी कोई डिजिटल पहचान नहीं है। लगभग 1.5 अरब लोग बैंकों से जुड़े हुए नहीं हैं, और 133 देशों के पास कोई डिजिटल पेमेंट सिस्टम नहीं है। अब, जबकि भारत जी-20 समूह देशों की अध्यक्षता कर रहा है, उसके पास डिजिटल प्लेटफॉर्म का एक पूरा पैकेज बनाने का अनूठा अवसर है। इन्हें दुनिया को डिजिटल रूप से बदलने के लिए वितरित किया जा सकता है। भारत की सॉफ्ट पावर को बढ़ाने का इससे बेहतर तरीका नहीं हो सकता।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित अमिताभ कांत के लेख पर आधारित। 16 दिसम्बर, 2022
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