मृदा-प्रबंधन की जरूरत

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5 दिसम्बर का दिन ‘विश्व मृदा दिवस’ या वर्ल्ड सॉयल डे’ के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष इसका शीर्षक ‘सॉयल्स रू वेयर फूड बिगिन्स’ था। यह अवसर है, जब हम हमारे भोजन के आधार तत्व यानि मृदा के स्वास्थ्य को समझें और उस पर ध्यान भी दें। मृदा की गुणवत्ता के स्तर को लेकर चुनौतिया लगातार बढ़ती जा रही हैं।

मृदा स्वास्थ्य का हास और उसके परिणाम –

  • मृदा के गिरते स्तर के लिए औद्योगिक गतिविधियाँ, खनन, कचरा प्रबंधन, कृषि के तरीके, जीवाश्म ईंधन, निष्कर्षण (extraction) और प्रसंस्करण तथा वाहनों का धुंआ आदि जिम्मेदार हैं।
  • मृदा के पोषक तत्वों में कमी के पीछे मिट्टी का कटाव, ठूंठ को जलाना आदि कारण हैं।
  • कुल भूमि क्षेत्र के 29% में मृदा-स्वास्थ्य की स्थिति ठीक नहीं है।
  • इससे कृषि उत्पादकता, जैव विविधता संरक्षण, पानी की गुणवत्ता और भूमि पर निर्भर समुदायों का सामाजिक आर्थिक जीवन प्रभावित होता है।
  • लगभग 37 करोड़ हेक्टेयर भूमि में पोषक तत्वों की कमी पाई जा रही है।
  • इसका कारण उर्वरकों और कीटनाशकों का आवश्यकता से अधिक उपयोग और दूषित जल से सिंचाई है।

मृदा- ह्रास के नुकसान बहुत ज्यादा हैं। मानव और पारिस्थितिकी पर इसका प्रभाव बहुत गहरा हो सकता है। इसे देखते हुए भारत ने मृदा-संरक्षण पर रणनीति तैयार की है। कुछ बिंदु –

मिट्टी को रसायन मुक्त बनाना

जैव विविधता की रक्षा करना

मृदा में ऑर्गेनिक तत्वों को बढ़ाना

मिट्टी की नमी को बनाए रखना

मृदा-क्षरण को रोकना

सरकार ने अपनी रणनीति को सफल बनाने हेतु कुछ विशेष प्रयास किए हैं –

  • 2015 में मृदा स्वास्थ्य कार्ड के द्वारा मिट्टी की गुणवत्ता पर किसानों को मार्गदर्शन देना।
  • मृदा क्षरण को रोकने के लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना की शुरूआत की गई है। इस योजना में प्राकृतिक वनस्पति का पुनर्जनन, रेनवाटर हार्वेस्टिंग और भूजल स्तर को बढ़ाना शामिल है।
  • द नेशनल मिशन फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर (एनएमएएस) के द्वारा आर्गेनिक और प्राकृतिक कृषि के पारंपरिक तरीकों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। इससे रसायनों व अन्य कृषि-इनपुट को कम करके छोटे किसानों का आर्थिक बोझ भी कम हो सकता है।
  • द फूड एण्ड एग्रीकल्चर आर्गनाइजेशन ऑफ द यूनाइटेड नेशन्स ने धारणीय कृषि खाद्यान्न के सरंक्षण के लिए अनेक उपादानों से भारत सरकार को सहयोग प्रदान किया है। यह संस्था कृषि मंत्रालय के सहयोग से किसानों को सही फसल का निर्णय लेने में मदद कर रही है। ग्रामीण विकास मंत्रालय के साथ अंत्योदय योजना (राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन) को भी सफल बनाने का प्रयत्न किया जा रहा है।

कृषि पारिस्थितिकी और जैविक खेती जैसे प्रयासों के लिए शिक्षाविदों, नीति-निर्माताओं और समाज के बीच एक प्रकार के सामंजस्य की जरूरत है। किसानों को समय पर और साक्ष्य- आधारित सूचना की उपलब्धता ही केंद्रीय मिशन होना चाहिए। एक एक ऐसा मिशन है, जिसमें ज्ञान, सफल तरीकों और वैश्विक स्तर की धारणीय प्रौद्योगिकी की साझेदारी से जीत हासिल की जा सकती है।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित कोण्डा रेड्डी छावा के लेख पर आधारित। 5 दिसंबर, 2022

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