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भारत के प्रत्येक क्षेत्र में मध्य वर्ग एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आ रहा है। फिलहाल वित्त मंत्री का फोकस सार्वजनिकबुनियादी ढांचे में निवेश से मध्यवर्ग पर पड़ने वाले प्रभाव पर है। इससे जुड़े कुछ बिंदु –
- सरकार के विभिन्न स्तरों में किए जाने वाले निवेश और लोगों के जीवन की गुणवत्ता से जुड़ी सार्वजनिक धारणाओं के बीच कोई तालमेल दिखाई नहीं देता है।
- अनेक साक्ष्य बताते हैं कि मध्य वर्ग का आकार लगातार बढ़ता जा रहा है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि कर-आधार पर प्राप्त मध्य वर्ग के डेटा की तुलना में इसका वास्तविक आकार कहीं बहुत बड़ा है। लेकिन सरकार शिक्षा, स्वास्थ्य, सार्वजनिक परिवहन जैसी इनकी बुनियादी सेवाओं की पूर्ति नहीं कर पा रही है। इस कारण यह वर्ग निजी सेवाओं की ओर झुकता चला गया है।
- अर्थशास्त्री मानते हैं कि मध्य वर्ग का यह झुकाव कर-आधार पर इनकी संख्या के निर्धारण पर प्रश्नचिन्ह लगाता है, क्योंकि अक्सर किसी भी वर्ग के निजी सेवाओं की ओर झुकाव का बुरा असर कर-अदायगी पर पड़ता है।
एक अध्ययन में लोगों से जब स्वयं ही वर्ग-निर्धारण की बात कही गई, तब देश की लगभग आधी जनता इस वर्ग में आ गई। इस अध्ययन में मध्यवर्ग की अधिकांश जनता को शहरों में बसा हुआ पाया गया है। सरकार के लिए यह चिंता का विषय होना चाहिए, क्योंकि जहाँ एक ओर सरकार को कर की हानि हो रही है, वहीं दूसरी ओर मध्यवर्ग की बढ़ती संख्या वोट बैंक का सहारा बन सकती है। अतः वित्त मंत्री की सोच सही दिशा में जा रही है। देश की उन्नति के लिए मध्यवर्ग की तेज रफ्तार मायने रखती है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 17 जनवरी, 2023
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