सरकार को न्यायपालिका पर हमले से बचना चाहिए

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हाल ही में केंद्रीय कानून मंत्री ने मुख्य न्यायाधीश से लिखित मांग की है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका को भी स्थान दिया जाना चाहिए। फिलहाल यह प्रक्रिया न्यायाधीशों का कॉलेजियम ही संपन्न करता है।

सरकार की मांग के कुछ बिंदु –

  • सरकार की मांग है कि खोज और मूल्यांकन की ऐसी समिति बनाई जाए, जिसमें सरकारी प्रतिनिधि हो। ये प्रतिनिधि, उच्च व उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए नामों की सिफारिश कर सके।
  • सरकार यह भी चाहती है कि उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम में केंद्र सरकार और उच्च न्यायालयों के कॉलेजियम में राज्य सरकार का एक प्रतिनिधि हो।
  • सरकार के इस तेवर का कारण 2015 में एक संविधान पीठ द्वारा नेशनल ज्यूडिशियल अपांइटमेन्टस कमीशन के गठन को अस्वीकृत करना माना जा रहा है। सरकार का आरोप है कि कॉलेजियम सिस्टम अपारदर्शी है, और इसे बदला जाना चाहिए।
  • अगर सरकार कॉलेजियम जैसी संवैधानिक व्यवस्था से असंतुष्ट है, तो उसे संशोधित कानून लाने की कोशिश पर ध्यान देना चाहिए।

यह आश्चर्य की बात है कि सरकार एक ऐसी न्यायपालिका पर लगाम लगाना चाहती है, जो हाल के कुछ वर्षों में सरकार के प्रति काफी उदार रही है। इसका एकमात्र निष्कर्ष यह है कि वर्तमान शासन, इस देश में अपने न्यायाधीशों की नियुक्ति चाहता है। इस कारण ही सरकार न्यायपालिका द्वारा प्रस्तावित नामों पर कई बार पुनर्विचार के बहाने कार्रवाई में देर करती रहती है। चाहे कुछ भी हो, सरकार का ऐसा प्रयास, लोकतांत्रिक कामकाज के लिए सही नहीं कहा जा सकता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए नियंत्रण और संतुलन जरूरी है।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 19 जनवरी, 2023

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