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मानव जीवन में विज्ञान और तकनीक वरदान और अभिशाप, दोनों तरह की भूमिका निभाते रहे हैं। फिलहाल हम सोशल मीडिया को लेकर इसी द्वंद का सामना कर रहे हैं। जीवन में इसकी घुसपैठ इतनी ज्यादा हो चुकी है कि इसे अलग रखना मुश्किल हो रहा है। दुनिया भर में हर आयु और वर्ग के लोग इससे प्रभावित हो रहे हैं।
सोशल मीडिया से किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव को देखते हुए अमेरिका के दो स्कूल बोर्ड ने फेसबुक और इंस्टाग्राम की पेरेन्ट कंपनी मेटा जैसी कंपनियों पर केस कर दिया है। यह माना जा रहा है कि स्नैपचैट, टिक-टॉक आदि लत लगाने वाले प्लेटफॉर्म हैं।
कंपनियों की जवाबदेही क्या है ?
– सामान्यतः ये सभी मंच अंडरएज या अवयस्कों के लिए बनाए गए प्रतिबंधों का पालन करते हैं।
– कानून के द्वारा दी गई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर सभी सोशल मीडिया मंचों को एक सीमा तक कानूनी सुरक्षा मिली हुई है।
– सभी मंच किशोरों में सोशल मीडिया को लेकर बढ़ती निर्भरता को नियंत्रित रखने के लिए मार्गदर्शन भी देते हैं।
समाधान –
सच्चाई यह है कि किसी भी नई प्रौद्योगिकी का आकर्षण हमेशा से ही ज्यादा रहता चला आया है। रेडियो की जगह टीवी ने ली और अब उसकी जगह सोशल मीडिया ले रहा है। इतना ही नहीं, उन्नत होती प्रौद्योगिकी तो एआई के माध्यम से वर्चुअल रिएलिटी की ऐसी सामग्री ला रही हैं, जिनका आकर्षण कई गुना ज्यादा है। ऐसा वही कंपनियां कर रही हैं, जिनसे स्कूल बोर्ड को परेशानी है। इसका समाधान यही है कि सामग्री बनने पर सबसे पहले उचित और व्यावहारिक प्रतिबंध लगना चाहिए। इस तक पहुंच के लिए ऐसी तकनीकी लेयर बनाई जानी चाहिए कि अभिभावक और स्कूल, दोनों ही इसे नियंत्रित करने में सक्षम हो। अंतिम लक्ष्य प्रौद्योगिकी को सीमित न करते हुए भविष्य की पीढ़ियों की रक्षा का होना चाहिए।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 28 मार्च, 2023
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