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दक्षिण एशियाई देशों पर चीन के लगातार बढ़ते प्रभाव के बीच, भारत के लिए अपने सभी पड़ोसी देशों से अच्छे संबंध बनाए रखने की चुनौती बढ़ी है।
वर्तमान स्थितियों से जुड़े कुछ बिंदु –
- हाल ही में भूटान के प्रधानमंत्री लोटे शेरिंग ने कहा है कि डोकलाम विवाद को सुलझाने में चीन की भी बराबर की भूमिका है। ज्ञातव्य हो कि भारत-चीन और भूटान के लिए डोकलाम त्रि-जंक्शन बिंदु है।
- 2019 में भूटान की नीति अलग थी, और वह चीन को इसमें कोई पद नहीं मानना चाहता था।
- इसका कारण शायद बदलती भू-राजनीतिक स्थितियाँ हैं। भारत-चीन का अपना सीमा विवाद चल रहा है। इसके चलते बाकी के पड़ोसी देश शायद दो बड़े एशियाई देशों के बीच फँसना नहीं चाहते हैं। हाल ही की अपनी भारत यात्रा के दौरान भूटान के प्रधानमंत्री ने डोकलाम पर अपने पूर्व बयान पर टिके रहने की बात कही है।
- पिछले दो दशकों में चीन ने भूटान जैसे कई विकासशील देशों को बड़ा कर्ज दे रखा है। 2016 और 2021 के बीच बीआरआई के तहत कर्ज का लगभग 80% दिया जा चुका है। अब ये देश चीन से दबे हुए हैं।
- नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों को चीन के कर्ज से पीछा छुड़ाने की सलाह देने से वहाँ भारत के विरूद्ध असंतोष जन्म ले सकता है, क्योंकि इन देशों की अनेक विकास योजनाएं इस कर्ज पर ही अश्रित हैं।
- 2015 में हम नेपाल का विरोध देख चुके हैं। बांग्लादेश में भी विकास योजनाओं से स्थिति को किसी तरह संभाला जा रहा है।
अब भारत के पास एक ही रास्ता बचता है कि वह पड़ोसी देशों में चल रही विकास योजनाओं को जल्दी पूरा करने की कोशिश करे। चीन से प्रतिस्पर्धा करना आसान नहीं है। लेकिन भारत के पास और कोई चारा भी नहीं है। हमें अपनी ‘पड़ोसी पहले’ की नीति को धार देने की जरूरत है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 30 मार्च, 2023
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