भारत में मानव पूंजी का पावरहाउस बनने की शक्ति है

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यूनाइटेड नेशन्स पॉपुलेशन फंड का अनुमान है कि भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है। इसे दूसरे तरीके से देखें, तो 2030 तक, 1 अरब से अधिक भारतीय 15-64 के कामकाजी आयुवर्ग में होंगे। यह भारत के मानवपूंजी का सबसे बड़ा केंद्र बना रहा है। भारत के जनसांख्यिकी लाभांश से जुड़े कुछ बिंदु –

भारत में 100 से अधिक युनिकॉर्न और 80,000 से अधिक स्टार्टअप हैं। ये स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि और वित्तीय सेवा जैसे मुख्य क्षेत्रों में नवाचार कर रहे हैं।

भारत में एसटीईएम स्नातकों की सबसे अधिक संख्या है।

47% एसटीईएम महिला स्नातक हैं, जो विश्व में सबसे ज्यादा हैं।

भारत का लक्ष्य क्या होना चाहिए –

10-24 आयु वर्ग की 26% आबादी के साथ, शहरी और ग्रामीण भारत में किशोरों और युवाओं का कल्याण प्रमुख प्राथमिकता होनी चाहिए।

पीएमजेएवाई, राष्ट्रीय पोषण मिशन और राष्ट्रीय शिक्षा नीति जैसी योजनाओं के माध्यम से प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा में निवेश से मानव पूंजी को सशक्त बनाना।

कौशल भारत में निवेश करना। कौशल भारत से कुशल भारत तक जाने के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ाना।

उद्यमिता को प्रोत्साहन देना।

अधिक-से-अधिक युवाओं को औपचारिक कार्यबल में शामिल करने का लक्ष्य होना चाहिए।

क्या संभावनाएं हैं –

आने वाले वर्षों में, रोजगार योग्य जनसंख्या में महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी दर में सुधार होना तय है। बैंक खाता रखने वाली महिलाओं की संख्या जहाँ 2015-16 में 53% थी, वह 2019-21 में 79% हो गई है।

महिलाओं में यौन संबंधों के बारे में जागरूकता आई है। गर्भ निरोधकों के प्रति सचेत होने का अर्थ है कि महिलाओं की श्रम भागीदारी बढ़ सकती है।

शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और परिवार नियोजन सेवाओं तक अधिक पहुंच के कारण देश में शादी की उम्र में देरी और प्रजनन क्षमता में गिरावट आई है। भारत ने अब 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर से नीचे 2.0 की कुल प्रजनन दर प्राप्त कर ली है। इसका अर्थ है कि जनसंख्या विस्फोट अतीत की बात हो गई है।

भारत एक वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने के अपने लक्ष्य के करीब पहुंच रहा है।

डिजिटल उपयोगकर्ताओं की बढ़ती संख्या के साथ, भारत में पूंजी निवेश की संभावना बढ़ रही है। इसके साथ ही भारत दुनिया का स्टार्टअप कैपिटल भी बन सकता है।

युवा जनसंख्या के होने का लाभ यही है कि नीतियों को समयानुकूल रखकर, हम लचीलेपन के साथ निरंतर विकास की ओर बढ़ सकते हैं।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित अमिताभ कांत के लेख पर आधारित। 21 अप्रैल, 2023

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