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देश की अर्थव्यवस्था में सुधार की दृष्टि से जेंडर बजटिंग या लैंगिक बजट बनाया जाना चाहिए। इसका अर्थ है कि राजस्व-निर्णय और व्यय के प्रभाव को पुरूष और महिलाओं पर अलग-अलग देखने का प्रयास किया जाना चाहिए। एक अनुमान है कि देश की महिलाओं पर किए जाने वाले व्यय के आकलन से न केवल लैंगिक अंतर को पाटने में मदद मिलेगी, बल्कि यह देश की अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने का एक रणनीतिक साधन भी हो सकता है। इससे जुड़े कुछ तथ्य –
– 90 से अधिक देश, किसी न किसी प्रकार के लैंगिक-बजट का अनुसरण करते हैं।
– ओईसीडी देशों (आर्गुनाइजेशन फॉर इकॉनॉमिक कॉपरेशन एण्ड डेवलपमेन्ट) में यह आठ वर्ष पहले जहाँ 44% था, वह अब 60% हो गया है।
– भारत ने भी 2005 में इसे अपनाया था।
– बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओं और उज्जवला जैसी योजनाएं इसी योजना के प्रयास का परिणाम हैं। इससे महिलाओं की स्थिति बेहतर हुई है।
– इन वर्षों में जेंडर-बजट पर मात्र 5% व्यय किया जाता रहा है। इस वर्ष के कुल 43.03 लाख करोड़ के बजट में इस पर 2.23 लाख करोड़ रखे गए हैं। इसे बढ़ाए जाने की जरूरत है।
भारत जैसी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए जेंडर बजटिंग से हर क्षेत्र की गुणवत्ता में सुधार होने की पूरी संभावना है। इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 01 मई, 2023
The post महिला सशक्तिकरण के लिए जेंडर-बजटिंग appeared first on AFEIAS.
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