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हाल ही में ‘द केरला स्टोरी’ नाम से एक फिल्म आई है, जो काफी विवादास्पद मानी जा रही है। पश्चिम बंगाल सरकार ने इस पर प्रतिबंध भी लगा दिया है। मद्रास और केरल में उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में भी इस पर प्रतिबंध लगाने की याचिका दायर की गई थी। लेकिन इन न्यायालयों ने ऐसा करने से मना कर दिया है।
किसी भी प्रकार की कला पर प्रतिबंध इसलिए नहीं लगाया जा सकता कि वह कुछ लोगों या किसी विशेष समुदाय की पसंद या नापसंद है। अगर इस पर विवाद है भी तो फिल्म जैसी विधा के लिए उसका अपना सेंसर बोर्ड है, जो नियामक के रूप में काम करता है। अगर वह किसी फिल्म को रिलीज के लायक मानता है, तो उसका राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए। फिर हमारे देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी है।
‘केरला स्टोरी’ की आलोचना करने वाले इसे राजनीतिक प्रसार से जोड़ रहे है, और कुछ लोग इसे सामुदायिक संबंधों को खराब करने वाला मान रहे है। मुद्दा यह है कि दर्शकों को ऐसी फिल्में देखने दिया जाना चाहिए। इतना जरूर है कि जनता की आपत्तियों को दर्ज करने के लिए फिल्म प्रमाणन अपीलीय न्यायाधिकरण को बहाल किया जाना चाहिए। हमारे देश के न्यायालयों पर अन्य मामलों का वैसे ही बहुत बोझ है। फिल्म जैसी कला-विधा के खिलाफ अपील करने के लिए इनका इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 6 मई, 2023
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