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हाल ही में भारत के विशाल भू-क्षेत्र को देखते हुए सूरज की रोशनी को बेहतर तरीके से इस्तेमाल करने का सुझाव दिया गया है। कॉर्नेल के एक अध्ययन के अनुसार दिन के उजाले का उचित उपयोग न करने से हम 4.1 अरब डॉलर या जीडीपी के 0.2% का नुकसान उठा रहे हैं। इसके अलावा स्वास्थ्य की हानि भी कर रहे हैं।
विशेषज्ञों का सुझाव है कि 1947 से पूर्व की तरह ही भारत को दो टाइम जोन में बांट दिया जाना चाहिए। काउंसिल ऑफ साइंटिफिक रिसर्च या (सीएसआईआर) का भी ऐसा ही मानना है। ऐसा इसलिए, क्योंकि भारत के पूर्वीं और पश्चिमी भागों के सूर्यास्त में लगभग 90 मिनट का अंतर होता है। अतः पूर्वी और पूर्वोत्तर भागों में मार्च से अक्टूबर के बीच घड़ी को एक घंटा आगे बढ़ाया जा सकता है। इससे दिन के उजाले के एक अतिरिक्त घंटे का इस्तेमाल किया जा सकेगा।
इस पर होने वाले बड़े निवेश को देखते हुए ऐसा करने का विचार टाला जा रहा है। दूसरे लॉजिस्टिक के समन्वय का प्रश्न खड़ा हो जाने की आशंका है।
डेलाइट सेविंग टाइम या ग्रीष्मकाल में अधिक प्रकाश प्राप्त करने के लिए घड़ियों को एक घंटे आगे बढ़ाने की प्रणाली, अमेरिका जैसे देशों में अच्छी तरह काम कर रही है। इस प्रकार का प्रयोग ऊर्जा की बचत करता है। कार्बन फुटप्रिन्ट में कटौती करता है। पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है। इस पर गंभीरता से विचार किए जाने की जरूरत है।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 15 अप्रैल, 2023
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