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हाल ही में बंबई उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में एक अकेली कामकाजी महिला को एक बच्चे को गोद लेने की अनुमति दे दी है। कानूनन एकल व्यक्ति किसी बच्चे को गोद ले सकता है। अविवाहित पुरूषों के लड़कियों को गोद लेने की मनाही है।
न्यायालय का यह निर्णय जिला न्यायालय के निर्णय को पलटते हुए दिया गया है। पहले निर्णय में महिला को गोद लेने की स्वीकृति इसलिए नहीं दी गई थी, क्योंकि आशंका थी कि कामकाजी होने के कारण वह बच्चे का पूरा ध्यान नहीं रख सकती है। इस प्रकार जिला न्यायालय ने बच्चे के कल्याण को सबसे ऊपर रखा था।
उच्च न्यायालय ने पारिवारिक व्यवस्था को सबसे ऊपर रखते हुए पति-पत्नी और बच्चे की मानक परिवार की परिभाषा को पूर्वाग्रह बताया है। न्यायालय का मानना है कि यह परिवार का सबसे लोकप्रिय और मानक प्रारूप हो सकता है, लेकिन एकमात्र नही।
परिवार को ऐसी इकाई के रूप में परिभाषित किया गया है, जहाँ सदस्य एक दूसरे की चिंता करते है। कोई जरूरी नहीं है कि पत्नी-पति इकाई वाला मॉडल एक बच्चे को पालने के लिए सबसे अच्छा प्रारूप हो। न्यायालय का यह निर्णय उस समय और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, जब उच्चतम न्यायालय समलैंगिक विवाह के प्रति इसलिए सकारात्मक दृष्टिकोण दिखा रहा हों कि वे भी एक परिवार का विकल्प बन सकते हैं।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 18 अप्रैल, 2023
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