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तुर्की के राष्ट्रपति चुनाव में रेसेप तैयप एर्दोगन की जीत हो गई है। यह एक ऐसा अधिनायकवादी शासक रहा है, जिसने तुर्की के संसदीय लोकतंत्र से प्रधानमंत्री के पद को समाप्त कर दिया। न्यायपालिका से लेकर कानून प्रवर्तन, सिविल सेवा सलाहकार निकायों और स्वतंत्र डोमेन विशेषज्ञों को निष्क्रिय बना दिया। उसने अल्पसंख्यक कुर्दों और जड़तावादी इस्लामियों को अपने विरोधियों से बचने के लिए एक सुरक्षा कवच के रूप में बढ़ावा दिया। उसके शासन में तुर्की में गंभीर आर्थिक संकट उत्पन्न होता रहा। 40% की मुद्रास्फीति पर जीने वाले तुर्कियों ने एर्दोगन को फिर से अपना नेता कैसे और क्यों चुना, यह सोचने वाली बात है।
कुछ बिंदु –
- तुर्की के शासक एर्दोगन ने अन्य निरंकुश शासकों की श्रेणी से अपने को बचा, रखने के लिए वहाँ लोकतंत्र का पूरा जाल बिछा रखा है।
- तुर्की के चुनावों से अन्य लोकतंत्रों को एक बड़ा सबक यह मिलता है कि लोकतंत्र में निष्पक्ष मतदान और मतगणना ही पर्याप्त नहीं होती है। बल्कि सफल लोकतंत्रों को उन संस्थानों की आवश्यकता होती है, जो सरकार का निरीक्षण कर सकें, और संतुलन बनाए रख सकें।
- उन संवैधानिक नियमों की भी जरूरत है, जो मूल अधिकारों की रक्षा करते रहें।
सत्ता में रहने के लिए चुनाव जीतना पर्याप्त हो सकता है, लेकिन लोकतंत्रवादी होने के लिए और भी बहुत कुछ करना होता है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 30 मई, 2023
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