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भारत-नेपाल संबंधों की एक प्राचीन परंपरा रही है। नेपाल की स्थिति अब काफी महत्वपूर्ण हो चुकी है। यह चीन और भारत जैसी दो बड़ी एशियाई शक्तियों के बीच में है, इसलिए भारत को नेपाल के साथ अपने संबंधों में चतुर होना चाहिए।
नेपाल के प्रधानमंत्री की यह भारत यात्रा अन्य द्विपक्षीय बैठकों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है। इससे पहले 2008 में जब प्रचंड प्रधानमंत्री बने थे, तो उन्होंने चीन की यात्रा पहले की थी। फिलहाल नेपाल के लिए अमेरिका और चीन के बीच रणनीतिक युद्धभूमि के रूप में फंसे होने का संकट छाया हुआ है। हाल ही में उसे अमेरिका से 50 करोड़ डॉलर का अनुदान मिला है। दूसरी ओर, नेपाल चीन के बीआरआई का सदस्य है, और उस पहल के तहत योजनाओं के तेजी से कार्यान्वयन पर जोर दिया जा रहा है।
इसी पृष्ठभूमि में आज भारत-नेपाल संबंधों को देखने की जरूरत है। अपनी भौगोलिक स्थिति को देखते हुए नेपाल स्वाभाविक रूप से चीन और भारत के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखने की कोशिश करेगा। आर्थिक मोर्चे पर, भारत को नेपाल में सभी लंबित परियोजनाओं में तेजी लानी चाहिए और जरूरत-आधारित विकास मॉडल पर कायम रहना चाहिए।
प्रचंड की यात्रा में दोनों पक्षों ने सात समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। पारगमन संधि और डिजिटल भुगतान पर समझौता किया गया है। नेपाल की अतिरिक्त बिजली की भारत में सप्लाई की एक लंबी परंपरा चल रही है। ये सभी स्वागतयोग्य पहल हैं। आपसी सम्मान के जरिए आगे भी संबंधों की मजबूती बनाए रखनी चाहिए।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 2 जून, 2023
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