दश म महलओ क उननत स सबधत कछ तथय

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  • यह एक अच्छी खबर है कि देश की बहुत सी लड़कियाँ पढ़ने के लिए विदेश जाने लगी हैं। यह वृद्धि कोविड महामारी के पूर्व वाले स्तर पर पहुँच गई है।
  • महानगर पहुँचने वाली महिलाओं का प्रतिशत पुरूषों के लगभग बराबर हो गया है।
  • टीयर 2 और टीयर 3 शहरों में यह प्रतिशत 45:55 है। इसका अर्थ है कि अधिक लड़कियाँ स्कूली शिक्षा पूरा कर पा रही हैं। साथ ही लड़कियों को अपने शहर से दूर भेजने के सामाजिक बंधन भी कम होते जा रहे हैं। महिलाओं की आर्थिक आत्मनिर्भरता की इच्छा का कुछ सम्मान किया जाने लगा है।
  • उच्च शिक्षा के लिए फाइनेंसिंग तक पहुँच आसान हो गई है। सामान्य लोग भी अच्छी शिक्षा के लिए अमीरों की तरह खर्च करने को तैयार हो रहे हैं।

इन सबके बावजूद अभी भारत के कार्यबल में महिला भागीदारी कम है। पहले तो भारत में अच्छी नौकरियों की कमी है। दूसरे, महिलाएं दक्षता में मात खा जाती हैं। लैंगिक समानता और समावेशी विकास के लिए महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण जरूरी है। भारत को वैश्विक कार्यबल के एक विकल्प के रूप में उभरने की जरूरत है। इसका सीधा संबंध देश में ही अवसरों की गुणवत्ता में सुधार करने से है। उम्मीद की जा सकती है कि नीतिगत सुधारों से ऐसा किया जा सकेगा।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 30 मई, 2023

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