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राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की शुरूआत 1973 में की गई थी।
- 50 वर्ष पूरे होने के बाद अब 18 राज्यों के 53 बाघ संरक्षण केंद्रों में 3,167 बाघ हैं।
- वैश्विक स्तर पर अभी भी बाघ एक लुप्त प्राय प्राणी बना हुआ है। इसमें भारत को भी अपनी भूमिका निभानी चाहिए। वर्तमान में चल रहे बाघ संरक्षण के प्रयासों को सुनिश्चित करने के लिए गियर बदलना चाहिए, जिससे इस दिशा में एक सकारात्मक प्रवृत्ति कायम रहे।
- इसका मतलब है कि आरक्षित-संरक्षित क्षेत्र की जगह उनके लिए फ्री कॉरिडोर बनाने पर फोकस होना चाहिए। आरक्षित क्षेत्रों के बाहर रहने वाले बाघों को भी पर्याप्त सुरक्षा देने, एक ही क्षेत्र में अंतरू प्रजनन के बजाय इनके कम आबादी वाले क्षेत्रों में प्रवास पर ध्यान दिया जाना चाहिए। इसमें एक ही क्षेत्र में इनकी बढ़ती जनसंख्या पर भी नियंत्रण रखा जा सकेगा।
- बाघ का संरक्षण इस बात को ध्यान में रखकर किया गया था कि खाद्य श्रृंखला के शीर्ष में रहने वाले बाघों की आबादी बढ़ने से अन्य वन्य जीव और वनस्पतियों के लिए एक बेहतर पारिस्थितिकी तंत्र बनेगा। हाइड्रोलॉजिकल सिस्टम में सुधार भी हुआ है। लेकिन लगभग 44% भारतीय वनों में आक्रामक विदेशी प्रजातियों का पसार चिंता का कारण है। इससे बाघों की खाद्य श्रृंखला का हिस्सा बनने वाले शाकाहारी जीवों की कमी की आशंका हो गई है। इसका समाधान ढूंढा जाना चाहिए।
- मानव-बाघ संघर्ष को भी कम किया जाना चाहिए।
इन तरीकों से संरक्षित बाघों की जनसंख्या को लंबे समय तक बचाए रखा जा सकता है।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 10 जून, 2023
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