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हाल ही में गुजरात उच्च न्यायालय ने एक 17 वर्षीय किशोरी को अपने सात महीने के गर्भ को समाप्त करने की अपील पर सही रवैया नहीं अपनाया है। न्यायालय ने ‘मनुस्मृति’ का हवाला देते हुए कहा है कि वास्तव में एक 17 वर्षीय बालिका गर्भधारण कर सकती है।
यहां एकमात्र मुद्दा किशोरी की भलाई का होना चाहिए था। इस किशोरी को सुरक्षित गर्भपात के अधिकार से वंचित किया जा रहा है। ज्ञातव्य हो कि न्यायालय के निर्देश के बिना 24 सप्ताह से ऊपर का गर्भपात नहीं कराया जा सकता है।
निजता का अधिकार कहता है कि यह एक महिला का अधिकार है कि वह गर्भावस्था को किस अवधि तक रखना चाहती है। पिछले सितंबर में, उच्चतम न्यायालय ने निर्दिष्ट किया था कि विवाहित या अविवाहित सभी महिलाओं को सुरक्षित गर्भपात का अधिकार है। दिसंबर, 2022 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने 33 सप्ताह के भ्रूण के गर्भपात की अनुमति देते हुए कहा था कि ‘माँ की पसंद अंतिम है’। अगर न्यायालय यह मानना है कि एक औरत माँ बन सकती है, तो उसे सुरक्षित गर्भपात के उसके अधिकार पर भी समान रूप से ध्यान देना चाहिए।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 10 जून, 2023
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