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संसदीय लोकतंत्र में सरकार पर नियंत्रण और संतुलन बनाए रखने की दृष्टि से संविधान के बुनियादी संरचना सिद्धांत को बनाया गया है। यह वह सिद्धांत है, जो संविधान की मुख्य विशेषताओं को बदलने की विधायिका की शक्ति को सीमित करता है। केशवानंद भारती मामले में इसे प्रतिस्थापित किया गया था।
केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच शक्तियों के बंटवारे को लेकर एक संवैधानिक पीठ ने इसी सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए फैसला दिया है। कुछ बिंदु –
- पीठ ने कहा है कि लोकतंत्र और संघवाद संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा हैं।
- व्यवहार में, जवाबदेही की त्रिस्तरीय श्रृंखला वह ढांचा है, जो लोकतंत्र को प्रभावी बनाती है। श्रृंखला में नौकरशाही, एक सरकार और एक विधायिका शामिल होती है।
इस प्रकार से दिल्ली सेवा विधेयक भले ही संसद ने पारित कर दिया हो, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने बुनियादी संरचना सिद्धांत के तहत इसके परीक्षण की दृष्टि से उसे संवैधानिक पीठ के पास भेजा है। अगर संवैधानिक पीठ की पहली टिप्पणी संघवाद के पक्ष में है, तो यह दिल्ली सरकार के भविष्य के लिए अच्छा संकेत कहा जा सकता है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 9 अगस्त, 2023
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