मातृभाषा में शिक्षा का सफल प्रभाव

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शोध-आधारित साक्ष्य बताते हैं कि बच्चों की प्राथमिक शिक्षा को मातृभाषा में होना चाहिए। इससे उनकी सीखने की क्षमता कई गुना बढ़ जाती है। चौंकाने वाली बात यह है कि वैश्विक आबादी के 40% हिस्से को उनकी मातृभाषा से अलग किसी अन्य भाषा में पढ़ाया जाता है। ऐसा होने पर बच्चों की सीखने की गति कम हो जाती है, और सामाजिक असमानताएं पैदा होती हैं। इसलिए केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने प्राथमिक शिक्षा के लिए मातृभाषा के उपयोग का आदेश दिया है।

कुछ आशंकाएं और उनसे जुड़े तथ्य –

क्या मातृभाषा में शिक्षा छात्रों के कैरियर की संभावनाओं को कमजोर कर देगी ? अंग्रेजी के बिना अच्छी नौकरियां नहीं मिलेंगी?

  • अपनी ग्लोबल एजुकेशन मॉनिटरिंग रिपोर्ट के माध्यम से यूनेस्को ने 1953 से लगातार मातृभाषा में शिक्षा की वकालत की है। 2016 की अपनी रिपोर्ट में भी यूनेस्को ने यही संदेश दोहराया है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अल्पसंख्यक भाषा बोलने वालों के लिए मातृभाषा में कम से कम छह साल की शिक्षा से सीखने के अंतराल को कम किया जा सकता है।

शोध से पता चलता है कि शिक्षा के प्राथमिक माध्यम के रूप में मातृभाषा से शुरूआत करने, और बाद में अंग्रेजी को शामिल करने से अंग्रेजी सीखना आसान हो जाता है। बाद में किसी अन्य भाषा का ज्ञान लिया जा सकता है, लेकिन प्रारंभिक वर्षों के दौरान मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाए जाने के फलस्वरूप जो कौशल विकसित होता है, वह अमूल्य साबित होता है। पहली भाषा कौशल जितनी अधिक विकसित होगी, दूसरी भाषा में परिणाम उतने ही बेहतर होंगे।

  • एक शोध में यह भी पाया गया है कि मातृभाषा से भिन्न भाषा में शिक्षा से साक्षरता दर में 18% और स्नातक दर में 20% की कमी हो सकती है।

मातृभाषा में शिक्षा, प्रत्येक भारतीय बच्चे का मौलिक अधिकार है। यह एक ऐसा शैक्षिक मार्ग है, जो सीखने की उत्कृष्टता को आगे बढ़ाता है। इसके साथ हम एक सफल समाज की नींव रख सकते हैं।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित कृष्णमूर्ति सुब्रहमण्यम के लेख पर आधारित। 11 अगस्त, 2023

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