आसियान के साथ जुड़ाव को गहरा रखा जाना चाहिए

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हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने जकार्ता में आसियान देशों की बैठक में भाग लिया है। वैश्विक व्यापार में आई अनिश्चितता के समय में हुई आसियान की इस वार्षिक बैठक को एशिया के पड़ोसी देशों के साथ पारंपरिक संबंधों को मजबूत करने के एक अवसर के रूप में देखा जा रहा है। यूनाइटेड नेशन्स कॉफ्रेंस ऑन ट्रेड एण्ड डेवलपमेंट, एक व्यापार सुविधा निकाय है। ‘इसने ग्लोबल ट्रेड अपडेट्स’ में उल्लेख किया है कि लगातार चलते वाली मुद्रास्फीति, वित्तीय कमजोरियो, डाउनग्रेड किए गए वैश्विक आर्थिक पूर्वानुमान और भू राजनीतिक तनाव के साथ 2023 की वर्तमान वैश्विक छमाही व्यापारिक दृष्टिकोण से कमजोर है।

कुछ तथ्य –

  • यूक्रेन युद्ध, जलवायु परिवर्तन और मुद्रास्फीति के दबावों के प्रति राष्ट्रीय नीति प्रतिक्रियाओं के कारण आसियान देशों में भी स्थिति खराब है।
  • इन स्थितियों में आसियान सदस्यों को प्रधानमंत्री का अप्रत्यक्ष संदेश मिला है कि भारत एक अधिक विश्वसनीय, दीर्घकालिक, रणनीतिक और आर्थिक भागीदार है, जिसकी कोई क्षेत्रीय विस्तार की महत्वकांक्षा नहीं है।
  • प्रधानमंत्री ने कोविड पश्चात की नियम-आधारित विश्व व्यवस्था और हिंद-प्रशांत क्षेत्र को स्वतंत्र और खुला रखे जाने की पुनः अपील की है।
  • भारत ने दक्षिणी देशों की आवाज बनने पर भी प्रतिबद्धता दिखाई है।

ज्ञातव्य हो कि भारत का आसियान के सभी 10 देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौता है। इन अर्थव्यवस्थाओं से भारत के व्यापारिक संबंधों में भी प्रगति हुई है। फिलहाल भारत के निर्यात से ज्यादा आयात में वृद्धि हुई है। चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा बढ़ रहा है। मुक्त व्यापार समझौते के चलते चीन को फायदा भी हो रहा है। लेकिन यह 2025 में पूरा हो जाएगा। इस बीच, पश्चिमी बाजारों में मंदी से भी भारत को व्यापार में लाभ नहीं हो रहा है। ऐसे में, भारत को एक सदाबहार सहयोगी और व्यापारिक साझेदार के रूप में आसियान देशों के बीच अपने महत्व को बनाए रखना बहुत जरूरी है।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 9 सितंबर, 2023

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