भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों को क्यों प्रोत्साहित करना चाहिए?

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  • भारत के कुल 2% छात्र विदेशी विश्वविद्यालयों में पढ़ने जाते हैं। लेकिन यही 2% जितना धन खर्च करता है, वह भारतीय विश्वविद्यालयों में शिक्षा लेने वाले कुल छात्रों द्वारा किए गए खर्च के बराबर होता है। यह एक बहुत बड़ा कारण है, जो विदेशी विश्वविद्यालयों के कैंपस भारत में खोले जाने की वकालत करता है।
  • यहाँ आने वाले विश्वविद्यालय स्थानीय शिक्षकों और शोध-प्रतिभा को अपने साथ रखना चाहेंगे। इससे इन विश्वविद्यालयों की फीस कम होगी, और स्थानीय प्रतिभाओं को बेहतर अवसर मिल सकेंगे।
  • इन विश्वविद्यालयों को कार्यात्मक स्वायत्तता दी जाएगी। इससे वंचित भारतीय विश्वविद्यालयों के लिए भी स्वायत्तता का आधार तैयार होगा।
  • इन विश्वविद्यालयों के आने से तृतीयक स्तर की शिक्षा का सामान्य स्तर बेहतर हो सकेगा।
  • जिन देशों में सबसे अधिक भारतीय छात्र पढ़ने जाते हैं, वहाँ तृतीयक स्तरीय शिक्षा की औसत आयु 40 वर्ष है। इसका उद्देश्य छात्रों के प्रवाह को बनाए रखकर, भरपूर धन इकट्ठा करना है। इसके माध्यम से ये स्तरीय शिक्षा प्रदान कर पाते हैं। चीन ऐसा दूसरा देश है, जिसके बहुत से छात्र विदेशी विश्वविद्यालयों में पढ़ने जाना चाहते हैं। इन छात्रों की आयु ढलती जा रही है। बूढ़ी होती एशियाई अर्थव्यवस्थाओं को भी उच्च शिक्षा की कमी का सामना करना पड़ रहा है। इन सबके मद्देनजर भारत में विदेशी कैंपस खोलने का निर्णय सही कहा जा सकता है।

अंततः वैश्वीकरण का दौर नौकरियां वहाँ उपलब्ध करा रहा है, जहाँ काम करने वाले सस्ते और ज्यादा लोग है। अतः शिक्षा को भी ऐसा ही मोड़ ले लेना चाहिए।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 26 सितंबर, 2023

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