भारत की खाद्य प्रणाली को पुनः व्यवस्थित करने का अवसर

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16 अक्टूबर को हमने ‘विश्व खाद्य’ दिवस मनाया है। लेकिन हम शायद ही भोजन को कभी एक तंत्र के रूप में देखते हैं। चूंकि भारत सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है, इसलिए हमसे बेहतर इस तंत्र को और कौन समझ सकता है।

कुछ बिंदु –

  • खाद्य तंत्र तीन आधारों पर धारणीय कहा जा सकता है पोषण, आजीविका एवं पर्यावरणीय सुरक्षा।
  • पोषण के स्तर पर देश की हालत काफी खराब है। 2019-21 का राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण बताता है कि 35% बच्चे उम्र से कम कद के हैं। 57% महिलाएं और 25% पुरूष एनीमिया से ग्रसित हैं। 24% वयस्क महिलाएं और 23% वयस्क पुरूष मोटापे का शिकार हैं।
  • यदि आजीविका का स्तर देखें, तो कृषि आधारित आय पर्याप्त नहीं होती है। 68% छोटे किसान अन्य साधनों से भी अपनी आय जुटाते हैं। मनरेगा इसका एक बड़ा साधन है।
  • तीसरा बिंदु पर्यावरणीय सुरक्षा से जुड़ा है। घटते प्राकृतिक संसाधनों और जलवायु परिवर्तन से भारत का खाद्यान्न उत्पादन खास प्रभावित हो रहा है। आधे से अधिक उपजाऊ भूमि में ऑर्गेनिक कार्बन की कमी है। भू-जल का दोहन चरम पर है।

कुल मिलाकर हमारे खाद्य तंत्र की हालत खराब है। परस्पर जुड़ी चुनौतियों को हल करने के लिए हमें तीन तरफा दृष्टिकोण की आवश्यकता है उपभोक्ता, उत्पादक और बिचैलिए।

  • उपभोक्ता मांग को स्वस्थध्पोषक और धारणीय आहार पर ले जाने की जरूरत है। ओदस और किनवा का स्थान देशी मोटे अनाजों को दिया जाना चाहिए। सार्वजनिक वितरण प्रणाली, मध्यान्ह भोजन, रेलवे केटरिंग, शहरी कैंटीन तथा सार्वजनिक व संस्थागत खरीद में मोटे अनाज को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। हमारे धार्मिक संस्थान भी यह परिवर्तन ला सकते हैं।
  • हमारे उत्पादकों या किसानों की आय में लचीलापन लाने के लिए अच्छा पारिश्रमिक देने वाली और पुनर्योजी (रिजेनेरेटिव) कृषि पद्धतियों की ओर जाना होगा। नेशनल मिशन ऑन नैचुरल फार्मिंग एक अच्छा प्रयास है। लेकिन फिलहाल धारणीय कृषि पद्धतियों के लिए बजट 1% से भी कम है। हमें कृषि वानिकी, संरक्षण कृषि, सटीक (प्रेसिशन) खेती आदि पद्धतियों को अपनाना होगा। किसानों को सीधे नकद-हस्तांतरण से भी समस्या हल होगी। धारणीय कृषि के लिए शोध को भी बढ़ावा मिलना चाहिए।
  • फार्म-टू-फोर्क मूल्य श्रृंखलाओं को अधिक टिकाऊ और समावेशी बनाना होगा। उपभोक्ताओं को कच्चे और प्रसंस्कृत भोजन की आपूर्ति करने वाले बिचैलियों को किसानों से सीधी खरीद के लिए प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। उन्हें धारणीय उपज की खरीद के लिए बढ़ावा दिया जाना चाहिए। निष्पक्ष व्यापार के लिए युवा एग्री-टेक उद्यमियों को और आगे लाया जाना चाहिए।

किसान उत्पादक संघों के सभी परिवार उपभोक्ता भी होते हैं। अतः उनमें आपसी लेन-देन का मामला बढ़ाने से भी लाभ होगा।

भारत के खाद्य तंत्र को पटरी पर लाना कोई असंभव कार्य नहीं है। चुस्त-दुरूस्त प्रणालियों के साथ हम इसकी चुनौतियों से निपट सकते हैं, और यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं होगी।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित अभिषेक जैन के लेख पर आधारित। 20 अक्टूबर, 2023

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