राजनीतिक दलों की आंतरिक संरचना के केंद्रीकरण से लोकतंत्र को खतरा

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चुनावों के शुरू होने के साथ ही चुनावी टिकटों का झगड़ा सभी पार्टियों में सत्ता के केंद्रीयकरण को दिखाता है। इस जद्दोजहद के कारण चुनावों से पहले नेताओं का पार्टी बदलना, अपने स्थानीय नेताओं को टिकट न मिलने के बाद कार्यकर्ताओं का विरोध प्रदर्शन और पार्टी के केंद्रीय पर्यवेक्षकों का समस्याओं के निवारण में उलझे रहना आम घटनाएं हो गई हैं।

राजनीतिक वैज्ञानिक नीलांजन सरकार का तर्क है कि केंद्रीकरण भारतीय राजनीति का एक संरचनात्मक पहलू है। इसमें क्षेत्रीय दल बहुत आगे हैं। इसके कारण दलों के प्रति निष्ठा की भावना में कमी देखी जाती है। उदाहरण के लिए विधानसभा चुनावों में किनारे कर दिए जाने पर भाजपा और कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्रियों ने भी दल बदले हैं।

केंद्रीकरण का उद्देश्य एक प्रमुख नेता, गुट या परिवार की शक्ति को संरक्षित करना होता है। परिणामतः यह स्थानीय नेताओं के पदानुक्रम और पार्टी आलाकमान के बीच की खाई को बढाता ही चला जाता है। यह लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है। स्थानीय पार्टी संगठन कार्यपालिका और नागरिकों के बीच की एक महत्वपूर्ण कड़ी होते हैं।

विदेशों के उदाहरण से सीखा जा सकता है –

  • लोकतंत्र को होने वाले नुकसान को देखते हुए ब्रिटेन की कंजर्वेटिव पार्टी ने उम्मीदवारों के चयन में प्राथमिक चुनाव आयोजित करने शुरू किए हैं। 2019 के चुनावों में, उम्मीदवारों की सूची को अंतिम निर्णय के लिए स्थानीय इकाइयों को भेजा गया था।
  • जर्मनी के मतदाता दो विकल्पों का प्रयोग करते हैं। एक वोट अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले उम्मीदवार के लिए होता है, और दूसरा उनकी पसंद के राजनीतिक दल के लिए होता है। नतीजतन, एक जर्मन मतदाता विभिन्न पार्टियों को चुन सकता है। यह प्रणाली स्थानीय स्तर पर प्रभावी उम्मीदवारों के चुनाव को प्रोत्साहित करने के लिए डिजाइन की गई है।

भारत के राजनीतिक दलों को भी इन उदाहरणों से प्रेरणा लेते हुए बदलाव लाने चाहिए, ताकि दलों के भीतर और बाहर लोकतंत्र की रक्षा हो सके।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 25 अक्टूबर, 2023

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