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हाल ही में 33 अमेरिकी राज्यों ने फेसबुक, इंस्टाग्राम, थ्रेड्स और व्हाट्सएप जैसे मेटा प्लेटफॉर्म्स के खिलाफ मुकदमा किया है। इन राज्यों का कहना है कि ये सभी सोशल मीडिया के मंच किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य को हानि पहुँचा रहे हैं।
मामले से जुड़े कुछ तथ्य –
- इन सोशल मीडिया प्लेटफार्म के नकारात्मक प्रभाव को देखते हुए कहा जा रहा है कि इन मंचों से जुड़े उपभोक्ता प्रभावों के आंतरिक मूल्यांकन को पारदर्शी बनाया जाना चाहिए।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए तकनीकी उत्पादों को डिजाइन किया जाना चाहिए।
- तकनीकी साक्षरता बढ़ाने और सोशल मीडिया के प्रभावों पर शोध बढ़ाने के लिए सार्वजनिक फंडिंग बढ़ाई जानी चाहिए।
- उद्योग मानक बनाकर उन प्रथाओं को लागू किया जाना चाहिए, जो बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान न पहुँचाएं।
- इस पूरे प्रकरण में सबसे बड़ी समस्या यह है कि तकनीक के प्रभावों से संबंधित शोध एवं अनुसंधान की बहुत कमी है। और यह संभव हो नहीं पाता, क्योंकि तकनीकी कंपनियां अपने मालिकाना अधिकरों की आड़ में सूचनाएं छुपाती हैं। सरकारें तब तक एकतरफा कार्यवाही नहीं कर सकतीं, जब तक न्यायालय इन कंपनियों के दायित्व स्थापित नहीं करतीं। यदि माता-पिता बच्चों का स्क्रीन टाइम रोकते हैं, तो उन्हें विद्रोह का सामना करना पडता है।
- इस हेतु चीन ने अवयस्क बच्चों के लिए स्मार्टफोन टाइम निश्चित कर रखा है।
इन मुकदमे से एक अच्छी बात यह सामने आती है कि सोशल मीडिया का बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाला प्रभाव सार्वजनिक हो गया है। अमेरिका में मिलने वाले समाधान से अन्य देशों को भी मार्गदर्शन मिल सकेगा। वैसे हर देश की सरकार के पास ऐसे हानिकारक साधनों को रोकने के लिए वैधानिक चेतावनियों के साथ-साथ नीतिगत विकल्पों की लंबी श्रृंखला होती है। सरकार चाहे, तो दंडात्मक कर भी लगा सकती हैं। जहाँ सार्वजनिक स्वास्थ्य का मामला हो, वहाँ इसे बेहतर विकल्पों से संबोधित किया जाना चाहिए।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 26 अक्टूबर, 2023
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