मृत्युदंड पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए

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भारत में मृत्यु की सजा को खत्म करने की मांग नए सिरे से उठ रही है। केवल यहीं नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में इसको बंद किए जाने को लेकर समर्थन बढ़ रहा है। इस पर कुछ बिंदु –

  • लगभग तीन- चौथाई विश्व ने इसे खत्म कर दिया है। लेकिन भारत ने मृत्यु दंड को खत्म करने को लेकर आए संयुक्त राष्ट्र के एक मसौदे के विरोध में वोट किया था।
  • इसके साथ ही ब्रिटिश कालीन इंडियन पैनल कोड का स्थान लेने वाले भारतीय न्याय संहिता बिल, 2023 में ऐसे अपराधों की संख्या को बढ़ाकर 11 से 15 कर दिया गया है, जिनमें मृत्यु दंड दिया जा सकता है।
  • 2022 के अंत में, 539 दोषियों को मृत्यु दंड दिया जाना था। 2016 के बाद से यह सबसे बड़ी संख्या थी। हालाँकि शीर्ष अदालत ने इस पर कहा है कि मामले पर निर्णय लेने से पहले निचली अदालतों को एक दोषी की परिस्थितियों से जुड़ी ऐसी सामग्री एकत्रित करनी चाहिए, जिससे कि मृत्यु दंड की नौबत न आए।
  • विधि आयोग की 262वीं रिपोर्ट में आतंक संबंधी अपराधों को छोड़कर, मृत्यु दंड को हटाने का समर्थन किया गया है।

भारत मृत्युदंड के लिए ‘दुर्लभ से दुर्लभतम’ सिद्धांत का पालन करता है। लेकिन इस पर कोई स्पष्ट दिशा निर्देश नहीं हैं। इसे व्यक्तिपरक रखा गया है। इस मुद्दे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि मृत्युदंड वास्तव में एक निवारक के रूप में काम करता है या नहीं ? इसके लिए दुनियाभर में कहीं भी कोई पुख्ता प्रमाण नहीं हैं। जब तक इस पर पर्याप्त डेटा उपलब्ध हो, तब तक अमेरिकन सिविल लिबरटीज यूनियन के आदर्श वाक्य को याद रखा जाना चाहिए कि ‘मृत्युदंड की लागत अधिक है, जबकि उद्धार कम है। यह निर्दोष जीवन को खतरे में डालता है।’

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 27 नवंबर, 2023

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