चुनाव संहिता के उल्लंघन-मामले में चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल

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चुनावों के दौरान पार्टियों और सरकारों से आदर्श आचार संहिता के पालन की अपेक्षा की जाती है। लेकिन इसे लागू कराना आसान नहीं है। आदर्श आचार संहिता के पालन का पूरा दारोमदार पार्टियों और सरकार के सहयोग और चुनाव आयुक्त की सतर्कता पर होता है। इसकी कुछ धाराएं जैसे ‘चुनाव प्रक्रिया की शुद्धता‘ को बनाए रखना आदि इरादे के अनुसार परिभाषित की जा सकती हैं। पिछले दिनों चुनाव आयोग ने संहिता के उल्लंघन के लिए कई नोटिस भेजे हैं, लेकिन इसमें सत्तापक्ष के प्रति झुकाव के संकेत नहीं मिल रहे हैं। कुछ उदाहरण –

  • चुनाव आयोग ने 30 नवंबर को तेलंगाना में होने वाले चुनाव से पहले राज्य सरकार को ‘रायथु बंधु योजना’ में किसानों के खाते में नकद हस्तांतरण से रोक दिया था। राज्य के वित्त मंत्री के एक वक्तव्य को आचार संहिता का उल्लंघन माना था।
  • कर्नाटक की कांग्रेस सरकार को एक विज्ञापन के लिए इस आधार पर नोटिस भेजा गया कि वह तेलंगाना में होने वाले चुनावों को प्रभावित करेगा।
  • राहुल और प्रियंका गांधी को भाजपा की एक शिकायत पर मोदी और अमित शाह के विरूद्ध अपमानजनक शब्दों के प्रयोग के लिए नोटिस भेजा गया। लेकिन मोदी और शाह के विरूद्ध लगाए गए कांग्रेस के आरोपों को अनदेखा कर दिया गाया।
  • चुनाव आयोग ने कांग्रेस की इस शिकायत का कोई जवाब नहीं दिया कि चुनाव के बीच में प्रवर्तन निदेशालय ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर सार्वजनिक रूप से रिश्वत लेने का आरोप लगाया, जिससे चुनाव में मतदाताओं के झुकाव पर प्रभाव पड़ सकता था।

यह सब देखते हुए लगता है कि चुनाव आयोग ने चुनावों में निष्पक्षता से काम नहीं किया है। इसका कारण यही है कि चुनाव आयोग की नियुक्तियों में सरकार का प्रभुत्व है। इन स्थितियों में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों की उम्मीद कैसे की जा सकती है?

द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 30 नवंबर, 2023

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