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हाल ही में मालदीव के राष्ट्रपति ने भारत से अनुरोध किया है कि वह अपने सैन्य कर्मियों को वापस बुला ले। इसी के बाद राष्ट्रपति मुइज्जू ने द्वीप के जल के हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण से संबंधित समझौते को नवीनीकृत नहीं करने का फैसला किया है। मालदीव के इन दोनों ही कदमों का दोनों देशों के कूटनीतिक संबंधों पर पड़ने वाला प्रभाव अच्छा नहीं कहा जा सकता है। इस पर कुछ बिंदु –
- 2019 में मालदीव और भारत के बीच हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण का समझौता हुआ था। इसमें भारत को मालदीव के क्षेत्रीय जल चट्टानें, लगून, समुद्री तट, समुद्री धाराएं और ज्वारीय स्तर के सर्वेक्षण की अनुमति दी गई थी। इसको आगे नहीं चलाने का मतलब है कि मालदीव का झुकाव चीन के प्रति बढ़ रहा है।
- पिछले एक दशक से चीन बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश के नाम पर देशों पर कर्ज का बोझ बढ़ा रहा है। 2018 में मालदीव पर लगभग 1.5 अरब डॉलर का कर्ज डाल दिया गया था, जिसमें से भारत ने 1.4 अरब डॉलर के ऋण भुगतान में मालदीव की मदद की थी।
- भारत से कोविशील्ड वैक्सीन की एक लाख डोज पाने वाला पहला देश मालदीव था।
हाल ही में मिले इस झटके के बावजूद, भारत को मालदीव में अपनी भागीदारी बढ़ानी होगी। इस द्वीप में लोकतंत्र को मजबूत करने और संस्थागत एवं क्षमता निर्माण में भी भारत को संलग्न होना चाहिए। इस प्रयास में भारत को अपने प्रवासी भारतीयों को ध्यान में रखना अच्छा होगा। उम्मीद की जा सकती है कि भारत दोनों देशों के बीच उपजी चिंताओं को दूर करके घनिष्ठ संबंधों को सुनिश्चित करने में अंततः सफल होगा।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 16 दिसंबर, 2023
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